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________________ सत्तरिमो संधि [५] रावणका वचन सुनकर एक सामन्त राजाने कहा, "अरे कौन ऐसा होगा, जो पानीले पदो परती नकार नहीं करेगा"। तब एक और मन्त्रोने अधिक वास्तविकताके साथ कहा, "अपमानसे मिले धनसे क्या होगा, छल ही सेवकका एकमात्र अलंकार है। पुत्र, स्त्री और मित्र ये सब निरलंकार हैं।" तब मन्दोदरीने कहा, "कौन जान सकता है कि राम' धरती लेकर, जानकी दे देंगे" | तब तुम सामन्सक दूतको भेजकर, सय कुछ देकर सन्धि कर लो। यदि रावण स्वजनोंके साथ युद्ध में मारा गया, तो फिर रत्नों और निधियों का क्या होगा ?" यह कहकर, सामन्तक दूतको भेज दिया गया, वह दूत मितार्थ और गुणवान था। वह महारथमें बैठ गया, अश्व कोड़ोंसे आहत हो उठे और उनके गढ़ते हुए चक्के धरतीको फाड़ने लगे। ऐसा जान पड़ता था कि अपनी निशाचर सेनाके साथ, दूसरा रावण ही जा रहा हो । दूतके आगमनको देखकर बानर सेनाने अपने हथियार उठा लिये। उसने सोचा, "कहीं ऐसा तो नहीं है कि राषण हो सन्नद्ध होकर आ गया हो" ॥१-१०॥ _[६] तब जाम्बवन्तने कहा, “जान पड़ता है कि यह राषण नहीं वरन् उसका दूत है।" उनमें ये बाते हो ही रही थी कि दूत ने सहसा प्रवेश किया। प्रवेशके अनन्तर दूतने देखा कि सेना पूरी तरह सन्नद्ध है। अनुचरों द्वारा बजाया गया तूर्य ऐसा लगता था मानो सवेरे-सवेरे सूर्योदय हो रहा हो । वह सेना, महामुनिकी भाँति धर्मपरायण (धनुष' और धर्मसे युक्त) थी, कमल वनके समान शिलीमुखों (बाणों और भ्रमरों से युक्त थी, कामिनीके मुखकी तरह, आँखोंको फाड़-फाड़कर देख रही यी, महायिके काव्यको तरङ् लक्षण (काव्य, नियम और
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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