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________________ * धरमचरिउ मी- जल व दहत्रयणासङ्कि | पाव-कन्दुहु | क्रियण राम लग्नहीँ इन्द-पश्चिन्द्र पन्दण-वशु व कुन्द द्वार पुणु अध्थाणु दिड्ड सायर - महणु व पर्याय रयण ||८|| खय-रवि-त्रिस्तु व वहिदय-ते । सचिव पर जर- मुडभेड ||९|| व पोल-जल डिड ||६|| गिसि-हयलु व स.इन्दु सार ||७|| घन्ता अह अह बजावत्त- धणुद्धर । सन्धि दाणणेण सहुँ कि । लक्क चु-माय ति खण्ड सुम्धर । गिहि-स्वणहूँ अब इज्जत । सव्वाहरणालङ्करिया । वे विणा तर्हि अवयरिया ||४०|| [७] || दुबई ॥ तेहिं वि वासु एव बलवहिँ पहरिसिहं सक्षणे । हमारेचि पासु सम्माणवि । बहुसारिक वरासणे ॥१॥ किय विणण कियरथीहुएं । सासु पजि दहमुह- दूएं ॥ २ ॥ 'अ अ राम राम रामा-पिय । सुरवर-समर समूहिं अकम्पिय ॥ ३ ॥ ॥ अहाँ अहाँ सयष्ठ-पिडिमि-परिपाळण | मायालुग्गीचन्त मिहारण ॥४॥ अहाँ अहाँ दम-दणु-विदावण | हरि-वरण-जण-जूरावण ॥५॥ वाणर- विवाहर- परमेसर ॥६॥ इन्दह- कुम्मयण्णु मेलिवर ॥७॥ छत्तहूँ पीढइँ हम-गय-रवर ||८|| सीय रणिय वति डिउ ॥९॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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