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________________ २२७ एक्कुणस्तरीमो संधि [२१] उस कन्याको देखकर प्रसनलक्ष्मणको भ्रान्ति होने लगी। उन्हें लगा, क्या ये उसके कोमल चरणतल हैं, नहीं-नहीं, नये नये लाल कमल हैं, क्या एक-दूसरेको दीप्त करनेवाली उसकी जाँचे हैं, नहीं नहीं ये तो कदली वृक्षके नये खम्भे हैं, क्या यह सोनेकी डोर झूल रही है, नहीं-नहीं यह तो रत्नोंके खजानेको रखनेवाला साँप है. पेटपर तीन पाएँ नहीं कही ये जोडागदेवकी नगरीकी खाइयाँ हैं, क्या यह सघन और काली रोमावलो है, नहीं नहीं कामदेवकी आगकी धूम्ररेखा है। क्या ये नये स्तन हैं, नहीं नहीं ये सोनेके कलश हैं, क्या ये हाथ हैं, नहीं नहीं ये तो नये अंकुर हैं, क्या ये लाल-लाल हथेलियों चल रहीं हैं, नहीं-नहीं, ये तो अशोक दल चल रहे हैं, क्या यह मुख है, नहीं. नहीं यह चन्द्रविम्ब है, क्या ये अधर हैं, नहीं-नहीं ये तो पके हुए विम्बफल है, क्या ये मोतियों सहित दशनाचलि है, नहीं-नहीं ये तो मालतीको नयी कलियाँ हैं, क्या ये कपोलकी सुवास हैं,नहीं. नहीं,यह हाथीका मदजल है।क्या ये नेत्र हैं, नहीं-नहीं, ये काम बाण हैं, क्यों ये भौंह प्रतिष्ठित हैं, नहीं-नहीं, यह तो कामदेव का धनुष है, क्या ये कानमें कुण्डल गहने हैं, नहीं नहीं, चमफते हुए सूर्य-चन्द्र हैं, क्या यह भाल है, नहीं नहीं यह आधा चाँद है। क्या यह सिर है, नहीं नहीं, यह तो भौरोंका कुल बाँध दिया गया है । उपस्थित सब राजा आन गये कि लक्ष्मण इस समय रूपमें आसक्त हैं। उन्होंने हाथ जोड़कर प्रार्थना की, हे कुमार, पाणिग्रहण कर लीजिए ॥१-१५।। __ [२२] इस अवसरपर जाम्बवन्तने कुमारसे कहा, "फागुन पंचमी शुकवारका दिन है। उत्तराषाढ़ है, सिद्धिका योग है, और भी यह कुम्भ लग्न है । ग्यारहवाँ ग्रहचक है, आज
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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