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पउमचरिउ
आरोग्गज सम्पय रिद्धि विद्धि । आप अपना परिपरि देव : सं सुवि सुमिसिह णन्दणेण । द- अक्सय-कफस हिं दप्पणेहिं रङ्गाहिरिन्छडेहि ।
अइरेण होइ सङ्गाम-सिद्धि ||४|| मित्रमिव तेव ॥५॥ किट पाणिग्गहणु जगणे || ६ || हवि-मण्डच वेश्य मक्खणेहिं ॥ ७ ॥ फरथइ स विवदिण डेहिं ||२||
घत्ता
उच्छाहें हिं धवलेहिं मलेहि सङ्केहिं हि अह हिं समूवि साहुकारियउ गरवह-सएहि ( १ ) किय- उच्छवें हिं ॥ ९ ॥