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________________ २२२ पडमचरित पं सह-माल पर कहवराउ । णं दिव्य पाणि तिथङ्कराउ ॥४॥ एरथन्तर अम्बरें धगधगन्ति । पवपापे-तणएं धरिय अन्ति ॥५॥ पेस वियब पारवरेण । णं पवर महाण सायरेण ॥शा पविय वेषमित भमोह-सत्ति। मं धरै मं धरें भुगू मुऐं दवति ॥७॥ जउ दुख-सवत्तिहँ समुहु थामि ! पद अच्छउ हउँ णिय-गिसउ जामि ॥८ पत्ता असहन्तिहें हियय-विणिगायाँ कपणु पस्थ मासुवरण । सम्ब] मत्तारें घत्तियाँ कुल-बाहुबह कुलहरु सरणु ॥९॥ किंण मुणिय पइँ महु तणियथति । हउँ सा णामेणामोह-सत्ति । कहलासुदरले भयावपासु। धरणिन्द दिण्णी रावणासु ॥२॥ सनाम-का करखणहाँ मुक। हस्मिाण विव गिरि दुइ ॥३॥ असाइम्ति विसला तणज सेउ । पासमि फग्गी विकरहि खेउ ॥३॥ भाषऍ अवलम्ब वि परम-बीद। अण्णाई सम्मान्तरें चोर-वीरु ५ सव-परणु णिरोसा पिण्णु ताई। गम बरिसहुँ सहि सहास जा'१५॥ हषुएण दुस् 'जइ स देहि। तो मुयमि पडीवी माह ण एहि ॥७॥ विजएँ पमणि 'लइ विष्णु दिग्णु । णड मिणमि मिह एवहि विमिष्णु ॥८ तं णिसुधि पवन-सुपण मुक्क। विहरफर गर जिय-णिलउ तुरु॥ एप्तहें वि ताप सरहस पहट्ट । स-वलेण बलेण विसच दिट्ठ ॥ १॥ पत्ता सिउ सम्ति कति हरन्ति बुहु सीयहं रामही लक्षणहाँ। मत्याका मधिलि जिद छ जहाँ रावणहाँ ॥१॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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