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________________ एक्कुणसतरीमो संधि २०० जो महामुनिके चिचकी भाँचि एकदम अडिग थे। थोड़ा और जानेपर, उन्होंने मलय पर्वत देखा। वह मलय पर्वत जो लवली लताओं, चन्दन वृक्षों और दक्षिण पधनका घर है ॥१-१०॥ [४] जिस पर्वतपर, युवतीजनोंके पैरों और जाँघोंको जीतनेवाले रक्तकमल और करली वृक्ष हैं। सुन्दरियोंकी चालका आभास देनेवाले हंसकुल बसे हुए हैं। जिसमें कर और करतलोका मन नीचा कर देनेवाले मालती और कंफेलीके वृक्ष हैं, जिसमें मुख और नेत्रोंकी आभाको पराजित कर देनेवाले कमल और इन्दीवर एक साथ मिले हैं। जिसमें मीठी बोली को अवहेलना करनेवाले काले कोयलकुल हैं । जिसमें भौंहॉकी छायासे भी कुटिल और कड़वे नीमके दल हैं। जिसमें बालोंकी शोभाको क्षीण कर देनेवाले मयूरोंके कुल सुन्दर नृत्य कर रहे हैं । उस सुन्दर मलय पर्वतको छोड़कर विहार करते हुए वे लोग दायें मुड़े वहाँ उन्हें किष्किन्धा पर्वतराज दिखाई दिया। कुतूहल उत्पन्न करनेवाले उसके शिखर ऊंचे थे। वह ऐसा लग रहा था मानो रमणशील धरतीरूपी विलासिनीका सुहावना उर-प्रदेश हो ॥१॥ [५] जिसमें इन्द्रनील मणिकी किरणोंसे धूमिल चन्द्रमा एक पुराने दर्पणकी भाँति लगता था। और फिर बड़ी चन्द्र पद्मराग मणियों की किरणोंसे इतना दीप्त हो उठता था कि रक्तकमलोंके समान प्रचण्ड दिखाई देने लगता। जहाँ चमकती हुई पत्रोंकी खदान चन्द्र बिम्बको कमलनीका पत्ता बना देती । हर्षेसे पुलकित, वे लोग मलयपर्वतको छोड़कर, आधे ही पलमें कावेरी नदीपर पहुँच गये। उन्होंने उस नदीको विभक्तकर, असी प्रकार पार कर लिया, जिस प्रकार कविवर महाकाव्यको कथाके दो भाग कर लेते हैं, या जिस प्रकार अनुचर अपने
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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