SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०६ पउमचरिउ [ ५ ] E रसुपक- कय लि-षणइँ थियाहूँ ॥ १ ॥ जहिं हंस-उलइँ भावासियाइँ || २ || अहिं माह कलेशी वणाइँ ॥ ३ ॥ कमलिन्दीवरहूँ समल्लियाहूँ ||४|| कोहल - कुछ हूँ कसराइँ थियाइँ ||५|| जहिं णिम्व-दहहूँ कहाँ कियाई ॥ ६ ॥ वरहिण-कुछाएँ रोबाविया हूँ ||७|| दाहिण - महुरऍ आसण्ण ताथ ॥८॥ घत्ता वहिं जुबइ एऊरु-परक्रियाएँ कामिनि गइ - छाया - मंसिमाएँ । कर-करमल-श्रहामिय-मणाएँ I जत्रियण-णयण-पद्द-धलियाइँ । यहिं महुर-वाणि अवहथियाएँ । भउद्दाषलि- छाया बक्कियाहूँ । जहिँ चिहुर मार- ओहा मियाइँ । तं मउ मुवि विहरन्ति जाब । तु-सिहरु कोडावणउ । किष्किन्ध-महागिरि विलय डरमियहें उहड़ - विलासिनि उर-पपसु सोहावगट ॥ ९ ॥ [ ५ ] जहिँ इन्दणोल-कर-मिजभाणु । ससि या जुष्ण-दप्पण- समाणु || १|| अद्दि पचमराय-कर- तैय-पिण्डु | रतुप्पल-सणिहु हो चण्ड ||२|| तं मेलें विरहच्छलिय-गत | जहिं मरगय-खाणि वि बिष्फुरन्ति । ससि-विम्बु भिसिणिपत्सु व करन्ति णिविस सरि कावेरि पन्त ||४|| महकण्य कहा इव कवरेहि ||५|| तिव्यक्करवाणि व गणइरेहिं ॥ ६॥ जा इस विवि गरवरेहिँ । सामिय- आगा इव किङ्करेदि ।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy