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पउमचरिउ
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रसुपक- कय लि-षणइँ थियाहूँ ॥ १ ॥ जहिं हंस-उलइँ भावासियाइँ || २ || अहिं माह कलेशी वणाइँ ॥ ३ ॥ कमलिन्दीवरहूँ समल्लियाहूँ ||४|| कोहल - कुछ हूँ कसराइँ थियाइँ ||५|| जहिं णिम्व-दहहूँ कहाँ कियाई ॥ ६ ॥ वरहिण-कुछाएँ रोबाविया हूँ ||७|| दाहिण - महुरऍ आसण्ण ताथ ॥८॥
घत्ता
वहिं जुबइ एऊरु-परक्रियाएँ
कामिनि गइ - छाया - मंसिमाएँ । कर-करमल-श्रहामिय-मणाएँ
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जत्रियण-णयण-पद्द-धलियाइँ ।
यहिं महुर-वाणि अवहथियाएँ । भउद्दाषलि- छाया बक्कियाहूँ । जहिँ चिहुर मार- ओहा मियाइँ । तं मउ मुवि विहरन्ति जाब ।
तु-सिहरु कोडावणउ ।
किष्किन्ध-महागिरि विलय डरमियहें उहड़ - विलासिनि उर-पपसु सोहावगट ॥ ९ ॥
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जहिँ इन्दणोल-कर-मिजभाणु ।
ससि या जुष्ण-दप्पण- समाणु || १||
अद्दि पचमराय-कर- तैय-पिण्डु |
रतुप्पल-सणिहु हो चण्ड ||२||
तं मेलें विरहच्छलिय-गत |
जहिं मरगय-खाणि वि बिष्फुरन्ति । ससि-विम्बु भिसिणिपत्सु व करन्ति णिविस सरि कावेरि पन्त ||४|| महकण्य कहा इव कवरेहि ||५|| तिव्यक्करवाणि व गणइरेहिं ॥ ६॥
जा इस विवि गरवरेहिँ । सामिय- आगा इव किङ्करेदि ।