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________________ एउपरिक धेरामहि व अलि-मुहलिएहि। मइ-चारित्तेहि व अखलिएहि ।।५।। गव-जोधणे हि व गहमागोयरेहिं । जिंग-सिरहिं व भामण्डल-धरहि ॥६॥ वयणेहि व हणुर-पसहि । पाहुणेहि व मण-मणकएहि ॥७५३ थिय सेहिं विमाणहि मशिमएहि । णं घर-फुल्लन्धुय पङ्कएहि ॥८॥ घत्ता मण-गमणे हिँ गयणे पयट्टएहि लक्खिउ लवण-समुनु किह । महि मध्यहाँ पहयल-रक्वसेण काटि जठर-पएसु जिह ।।१।। [३] दीसइ रयणायरु रयण-वाहु । विस घ स-बारि कन्दु व स-गाहु॥१॥ श्ररथाहु सुर्हि व हरिथ क करालु । मण्डारिउ म घहु-रयग-पालु |२| सूहव-पुरिलो व सलोण-सील। सुग्गीवु व पयस्थि-इम्दणीलु ।।३।। जिंण सुत्र-घयह व किय-वसेलु। मन्झण्णु व उप्परै पहिय-बेलु ।। ससि घ परिपालिय-समय-सारु । बुजण-पुरिसो व्य सहाव-सारु ॥५॥ णिवण-आलाचु व अपमाणु । जोइसु व मीण-कफाय-धाशु ॥३॥ मह-कहब-णिवन्धु व सा-गहिरू । चामीयर-चसय व पीय-महरु ॥७॥ तं जलणिति उल्लङ्घन्तरहि । वोहिरधइँ दिहई जन्तएहि ॥८॥ पीसीहवाई एम्विष-लाई। महरिसि-विसाई व अविचलाई ।।९।। घत्ता अग्णु वि श्रीचन्तक जन्सऍहि तिहि मि णिहालिज गिरि महा। जो लवलि-वहाँ चन्दण-सरहाँ दाहिग-पवणहाँ थामल ॥१०॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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