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________________ उनहत्तरवी सन्धि [१] विद्याधरके वचनरूपी रसायनसे राम इतने अधिक आश्वस्त हुए कि मानो आकाशमें प्रतिपदाका चाँद देखकर समुद्र ही उद्वेलित हो उठा हो। युद्धविजेता रामने हर्षपूर्वक सामन्तोंको काममें नियुक्त कर दिया। उन्होंने कहा, "बताओ किसका मन है, जो अपने शरीरके बलपर सूर्योदयके पहले-पहले आ जाय, जो मेरा मनोरथ पूरा कर सके, और लक्ष्मणको जीवनदान दे सके।" यह वचन सुनते ही रावणके वनको उजाड़नेवाले हनुमान्ने कहा, "हे देव, मेरे शरीरमें मेरा मन है ! मैं कहता हूँ कि मैं सूर्योदयके पहले आ जाऊँगा, मैं तुम्हारे मनकी अभिलाषा पूरी करूँगा, और मैं लक्ष्मणको जीवन दान भी दूंगा।" तारापुत्र अंगद ने भी यही बात कही कि मैं हनुमानका सहायक बनूंगा। भामण्डल बोला, “हे स्वामी, सुनिए मैं दैवयोग से उत्तरसाक्षी होकर जाऊँगा।" जनक, पवन और सुप्रीवके बेटे रामके पैरोंपर इस प्रकार गिरे मानो कल्याणके समय तीनों इन्द्र जिन-भगवान्के चरणोंमें नत हो रहे हो॥१-२॥ २] सुन्दर विमानोंमें बैठकर उन्होंने कूच किया। देवताओंकी भाँति वे विमान सबके लिए कल्याणकारी थे। चुम्बनोंकी भाँति उनमें तरह-तरह की ध्वनियाँ सुनाई दे रही थीं, शिवपद्की भाँति, सनमें मोतियोंकी कई पंक्तियों थी। सुन्दरियोंके मुखकी भाँति उनका रंग एकदम उज्ज्वल था, धेश्याओंके पित्तको सरह वे चंचल ये, महाकवियोंके काज्यके समान सुगठित थे, सजन पुरुषों की भाँति स्पष्ट और साफ थे,
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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