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________________ [ ६६. एकूणसत्तरीम संधि ] [] विज्जाहर-वयण- रसायण हँ पडिवा-यन्दे दिऍण सरसैंण परचिय आहवेण | 'किं कहाँ वि अस्थि मणु सह वो जगह मणोरह मधु साधु तं वयणु सुर्णेवि मरुान्दणेण | 'महु अस्थि देव मणु सहय- अ हजाम मनोहर सुह मणा तारा-सएण वि तु एव । मामण्डलु पण 'णु सुसामि । से जय-पवण- सुग्गीव-सुम कहाण का विरही । आसासित बलह कहि मिणमा किह । उहि हि ।। सामन्त पज्जोइय राहवे । जो एइ अन्तएँ पय तोजी ||१|| ॥ २ ॥ २५ || ४ || दुखद रावण-वण-मणे इउँ एमि अन्तएँ हउ जीवित देमि जगदणासु' ||५|| ||५|| 'हउँ शृणुवह होमि सहाज देव' ||७|| । इउँ विहिँ उत्तर सक्खिण जामि ॥४॥ घता रामहीं चलणें हिं पदिय कि । तिष्णि वि सिहुण-इन्द जिह ||९|| [ २ ] मारूद विमाहिं सुन्दरेहिं । सुवर्णेहिं व गाणाविह सारेहिं अमरेहि व सव-सुरेहिं ||१|| सिव-पयर्हि व मुतावद्धि-धरेहिं ॥ २॥ कामिणि-मुर्ह व वज्जलेहिं । छिन्छ- चितेहिं व चञ्चलेहिं ॥३॥ सुपुरिस-चरिएहिं व पथदिपुर्ति ॥४॥ महकह-कहिं व सुरदिहिं 1
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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