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________________ असमी संधि २०१ [१३] इतने में एक विशाल अजगरने उसका आधा शरीर निगल लिया । सौदास विद्याधरने उससे कहा, "क्या तलवार से अजगरके दो टुकड़े कर दूँ ।" सब कुछ सहन करनेवाली उस परमेश्वरीने कहा, "क्या तपस्वियोंको प्राणिबंध उचित है ।" पिताजी से यह कह देना कि तुम्हारी पुत्रीने शीलनिधिकी रक्षा कर ली है । निराहार तपश्चरण कर अजगरको उसने अपना शरीर अर्पित कर दिया है।" सौदास विद्याधरने जो कुछ देखा था, वह सब राजा त्रिभुवन आनन्दको बता दिया। राजा करुण विलाप करता हुआ वहाँ पहुँचा । स्वजनोंको वह सब देखकर बहुत दुःख हुआ। जिन भगवानकी जय बोलकर, rireराने अपने प्राण त्याग दिये। जो विद्याधर उसे उड़ाकर ले गया था, वह भी तपकर, दशरथका पुत्र लक्ष्मण हुआ। यह अनंगसरा भी भरकर विशल्या सुन्दरीके नामसे उत्पन्न हुई । हे राम, उसके शरीर के स्नानजलसे, लक्ष्मण अपनी भुजाएँ ठोकते हुए उठ पढ़ेंगे ||१-१०॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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