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पउमचरि
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||१||
बुद्ध वहिँ पवर-अङ्गमे । बोलिन तो विजाहरेण । परमेसरि पमणइ सच्च सह । हाथों यह विहि -घर णिरोस उजविउ । सउदो जं सहि लक्लियज । तिहुअणभाजन्दु पधाइयउ ।
देह गिलिड र जङ्गमै " किं हम्मद अजगरु असिवरेण" ॥२॥ "कि तवसिहि जुती पाण-वह ॥३॥ सुह दुहियएँ रखिय सीळ - णिहि ॥ ४ ॥ अजयरहों सरोरु समलविद" ||५|| तं खलु गरिन् अस्य ॥ ६॥ कलम (१) कन्दन्तु परायड ॥ ७॥ यहुँ उप्पा जिणु जय मणन्ति सुखगङ्गसर ॥ ८ ॥ यि जेण सो वि तड करेंषि मुड | दसरहद्दीं पुतु सोभिति हु ||९||
दाहु पर ।
तब
घन्ता
एह वि मषि अङ्गसर उप्पण्ण बिसला सुन्दरि ।
वह तह सर्वेण जलेंग पर सहँ भुषणन्तु उद्रुद्द इरि ॥१०॥