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________________ २०० पउमचरि [12] ||१|| बुद्ध वहिँ पवर-अङ्गमे । बोलिन तो विजाहरेण । परमेसरि पमणइ सच्च सह । हाथों यह विहि -घर णिरोस उजविउ । सउदो जं सहि लक्लियज । तिहुअणभाजन्दु पधाइयउ । देह गिलिड र जङ्गमै " किं हम्मद अजगरु असिवरेण" ॥२॥ "कि तवसिहि जुती पाण-वह ॥३॥ सुह दुहियएँ रखिय सीळ - णिहि ॥ ४ ॥ अजयरहों सरोरु समलविद" ||५|| तं खलु गरिन् अस्य ॥ ६॥ कलम (१) कन्दन्तु परायड ॥ ७॥ यहुँ उप्पा जिणु जय मणन्ति सुखगङ्गसर ॥ ८ ॥ यि जेण सो वि तड करेंषि मुड | दसरहद्दीं पुतु सोभिति हु ||९|| दाहु पर । तब घन्ता एह वि मषि अङ्गसर उप्पण्ण बिसला सुन्दरि । वह तह सर्वेण जलेंग पर सहँ भुषणन्तु उद्रुद्द इरि ॥१०॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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