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________________ असमां संधि नामक राजा है। उसकी पत्नी महादेवी सुप्रभा है । उसकी चाल हंसके समान है। उसके पुत्रका नाम प्रतिचन्द्र है। मैं वही हूँ। मेरी भुजाएँ पुलकित हो रही है। एक बार मैं सपत्नीक विहार करता हुआ आकाशमार्ग से जा रहा था। परन्तु अपने सालेके बैरकी याद कर, सहस्रपत्र एकदम उछल पड़ा। क्रोध में आकर हम दोनों आकाश में ऐसे लड़ने लगे, मानो दो दिग्गज हो लड़ पड़े हों। हे राम, उसने प्रयास कर, मेरे ऊपर aurce शक्ति छोड़ी। उस शक्तिसे आहत होकर मैं अयोध्याके बाहर एक उद्यान में जा पड़ा। वहाँ गिरते हुए मुझे भरतने देख लिया | उन्होंने गन्धोदकसे मुझे सींच दिया। उस जलसे मुझे सहसा चेतना आ गयी। मैं दुबारा वेदनाशून्य नये- जैसा हो गया, बिलासिनीके प्रेम की भाँति ॥ १-१०॥ १८९ [३] मैंने राजा भरतसे पूछा, “आपने यह गन्धजल कहाँसे प्राप्त किया ? उन्होंने यह रहस्य मुझसे छिपाया नहीं। उन्होंने बताया एक बार पूरे प्रदेश के साथ अयोध्या नगरीमें सब लोगोंको व्याधि हो गयी, सबके हृदयमें चोट-सी अनुभव होती, अरोचकता बढ़ गयी। भयंकर जलन हो रही थी। जैसे सन्निपात हो या सर्वनाशी ग्रह हो । सिरमें दई था और कपाल में भारी रोग था, साँस और खाँसी उखड़ी जा रही थी । उस अवसरपर एक आदमी अपनी पत्नी, पुत्र और सगेसम्बन्धियोंके साथ आया । ध्वजा, सेना, परिजन और नगरके साथ अकेला वह राजा द्रोणवन स्वस्थ था। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार इन्द्र व्याधिले रहित, और ऋद्धि, वृद्धि एवं श्री सम्पदासे सहित होता है। उसने विशल्या का जल सबपर छिड़क दिया, सारा नगर इस प्रकार फिर से जीवित हो गया, मानो उसे किसीने अमृतसे सींच दिया हो" ।।१९।।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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