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पउमचरित
पद्धिचन्दु नासु उप्पण्णु सुर। सोहउँ रामञ्जरिभण्ण-भुउ ॥३.५ स-कलम केण पि कारणोंग । किा लीलएँ जामि महङ्गणेण ॥ ४॥ मेहुणियहि तणउ बर सचि। तो सहसविजउ थिउ उत्थरॅवि ॥५॥ स-कसाय के वि तह अभिडिय। जे दिस-दुग्घोह समावस्य ॥६॥ ते आयामपिणु अभय-भव । महु सत्ति विसस्जिय चमड-रव ॥७॥ विणिमिन्दंवि पादिउ ताद रणे। उस वाहिरें उजाण-धणे ॥४॥ णिषद्वन्तर मरहे लक्षियज । धीवएण सम्मोक्खिया॥९॥
पत्ता
ते अभोक्षण-घाणिऍण वलमणुअप्पाइउ मेउ । जाउ विसल्लु पुणपणबद्ध णं णेड विलासिणि-फेरउ ॥१०॥
[३] पुणु पुच्छिउ भरह-णरिन्दु म। "उ गन्ध सलिलु कहि लक्षु पइँ ॥५॥ तेण वि महु गुन्झु ण रक्खियड । सतुहण-वरि? अक्सियह ॥२॥ "स-क्सियहाँ अजमा-पवणही। उपप्पण चाहि सम्वहाँ जगहों ॥३॥ उर-वाउ अरोचन दाहु जरु। कल-सणिवाउ गg छदि-करु ५५४॥ सिरे सूल कवाल-रोउ पवरू। सपजिसड (?) सासु सास्तु श्रयकापा तेहएं काल सहि एक्कु अणु। स-कलत्तु म पुन स-बन्धुजणू ||३ स-धउ स-बलु स-णयह स-परियणु । परिजियइ सइता दोणघणु गा जिह सुरवाह सन्च-बाहि-रहिन। सिरि-सम्पय-रिद्धि-विद्धि साहिउ ॥४॥
तेण विसलहें तणड जलु आणेपिणु उपरि विसउ | पट्टणु परजीवियउ ल-पतरु णं अमिए सित्ता" ।।।