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पउमचरिउ
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सं भरहें पुच्छिउ दोणघणु ॥ १३॥ । जाणविह नगन्ध- - रिथि- बहुलु ॥२॥ जिप-सुक झाणु जिह निम्मर || ३ || सुहि-दंसणु जिह भाणद-बरु" ॥४॥ पष्फुलिय- जयण-कमलु सह ||५|| उ हव विसल्ला - सुन्दरिहं ॥ ६ ॥ जसु लग्गइ तासु वाहि हरद्द" ॥७॥ पिय-यर दो बिसज्ज ||
जं पच्चुीधि सक्लु जशु । "अहो माम एवं कहिँ लघु जलु पर कज्जु जेम जं सीयलट जिण वयण जेस जं वाहिहरु । निसुर्णेवि दोणु णराहिवइ । "मम दुहियहँ अमर-मणोहरिहें । विष्णु मन्तिएँ अमियाँ अणुहरइ । वं मिसुर्णेवि मरहें पुज्जियउ ।
चत्ता
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अप्पुणु गर तं जिग-भवणु जं मामय सोक्ख विहाणु । णाबद्द सग्गों उच्छले वि मोह-मण्डले पडिउ विमाणु ॥ ९ ॥
तहिं सिद्ध कूडे सुर-साराह । तोषक-चक- परमेसरहों । सुपरिभिर सीहासहाँ । घुषम्त धव-छत्त-जयहो । भामण्डल मण्डिय पच्छहीँ । सइलोक - कच्छि - लच्छि उरहीं। मोहन्धासुर-त्रिणिमिद । संसार-महद्दुम-पाटणहौं । इन्दिय-हण णिबन्धणीं ।
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किय शुद्ध अरहन्त मडाराह ॥ १॥ अ- कसा यह शिट्टाहरहों ॥२॥ भवन्धुर-सामर- वासणड़ों ॥३॥ किय-विह- कम्म कुल कयहाँ ॥ ४ ॥ पहरण-रहियों जयच्छहीं ॥ ५ ॥ परिवालिय- अजरामर - पुरर्हो ॥ ६ ॥ उपपत्ति-वेति परिखिन्दण्हीं ॥७॥ कन्दप्प-मडम्फर सारणहों ॥ ६ ॥ गिद्दड्ड-दु किय-कम्मेन्
॥ ९ ॥
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