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________________ छासहिमो संधि परिचय देना चाह रहा हो। वह शक्ति कैकशीके पुत्र रावणके दाहिने हाथमें ऐसी शोभा पा रही थी मानो लक्ष्मणका भविष्य ही हो ।।१-६:: [१२] वह शक्ति, जो गरजते हुए मत्त गजोंके मस्तक फाड़ सकती थी, और जो बुर्द्धर राजाओं, निशाचर राजाओंका दमन कर सकती थी, जो शत्रुओंकी पत्नियोको रुला सकती थी, जो रथों और गोंके समूहको लोट-पोट कर सकती थी, जो बिजलीकी तरह भयंकर थी और लोगोंको यमपथ दिखा सकती थी। जो वालिके तपश्चरणके समय कैलासके उठाने पर रावणको मिली थी। वह शक्ति रावण शत्रुसन्तापक विभीषण पर छोड़ने जा ही रहा था कि लक्ष्मणने अपना रथ, उन दोनोंके पीच, लाकर खड़ा कर दिया | उसने कहा, "अरे दुष्ट, तू मुझसे जीते जी नहीं जा सकता, यदि तुझमें ताकत हो, तो अपनी शक्ति मुझ पर मार" यह सुनकर रत्नाश्रयका बेटा रावण गद्गद हो गया, और अपने पुलकित बाहुसे शक्ति छोड़ दी। उस शक्तिने नील, नल और दूसरे सभी वानर वंशियोंको आहत कर दिया। वही शक्ति लक्ष्मणके वक्षस्थल पर जा लगी, मानो वह रावणका भाग्य थी, और रामके लिए दुःखकी खान ॥१-१०॥ _[१३] जब कुमार इस प्रकार गिर पड़ा, तो उसकी खबर कानों कान पहुँची । जैसे सिंह जंगल में, गजसे भिड़ता है, उसी प्रकार राम युद्धमें संलग्न हो गये। इस प्रकार राम और रावणका युद्ध होने लगा। अत्यन्त हर्ष और रोमांचसे भरा हुआ। अप्सराओंके नेत्रोंको आनन्द देने वाले देवताओंकी दुन्दुभिकी ध्वनिको भी मात देने वाले उन दोनों में द्वन्द्व युद्ध होने लगा। बार-बार दोनों सन्धान और स्वरों ( सर ) के अन्धानसे अपने-आपको सजा रहे थे। बार-बार जिन भगवान्
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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