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पदमचरित
[ २] जा गजम्स-मस्त मायन-कम्म-
णिसण-सोला। बुद्धर-गरवरिन्द-दावन्द-बिन्द-विषण-कोला || जा परिणारिरोवावणिय । रह-तस्य-थट्ट-लोहापणिय ॥२॥ जा विजु जेध भीसावणिय। जम-लोय-पन्थन्दरिसावणिय ॥३॥ जा दिपणी वालि-तर-घरणें । धरणेन्दै कविलासुबरा ।। सा सत्ति ससु-सन्तासणहाँ। त्रिमुबह ण मुबइ विहीसण ॥५॥ वावहि खर-दूसण-गणेग। र अन्तरे दिग्णु जणाणेण वा 'अरे खल जीवस्तु का जाहि महु । अह सत्ति सति तो मेलि लहु' ।। सं णिसुर्णेबि स्यणासघ-सुऍण। भामेलिय गोलिय-भुण ॥६॥ विम्पन्तहुँ माल-गीकम्यहुँ। अव मि भोगना ५
पचा तो क्षणही परिथ उर-त्थले साल किह । दिहि रावणहाँ रामही दुषचप्पत्ति मिह ||१०||
[३] जं पारिज कुमारु महिमण्डलें तं शोसरियाणाम् ।
जिह करें महन्दु तिह समरे सरहसु मिडिउ रामु ॥१॥ रामणराम-जुना माविमद्दउ । सरहम णिम्भर पुनय-विसहल ।।२।। मच्छर-गण-मण-णपणाणन्द्रहुँ । अफाकिय-सुर-मुन्दुहि-साईं ॥३॥ सन्धिय-सर-वविय-सिकारहुँ । वारवार-जिण-णामुचारहुँ ।