SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ पदमचरित [ २] जा गजम्स-मस्त मायन-कम्म- णिसण-सोला। बुद्धर-गरवरिन्द-दावन्द-बिन्द-विषण-कोला || जा परिणारिरोवावणिय । रह-तस्य-थट्ट-लोहापणिय ॥२॥ जा विजु जेध भीसावणिय। जम-लोय-पन्थन्दरिसावणिय ॥३॥ जा दिपणी वालि-तर-घरणें । धरणेन्दै कविलासुबरा ।। सा सत्ति ससु-सन्तासणहाँ। त्रिमुबह ण मुबइ विहीसण ॥५॥ वावहि खर-दूसण-गणेग। र अन्तरे दिग्णु जणाणेण वा 'अरे खल जीवस्तु का जाहि महु । अह सत्ति सति तो मेलि लहु' ।। सं णिसुर्णेबि स्यणासघ-सुऍण। भामेलिय गोलिय-भुण ॥६॥ विम्पन्तहुँ माल-गीकम्यहुँ। अव मि भोगना ५ पचा तो क्षणही परिथ उर-त्थले साल किह । दिहि रावणहाँ रामही दुषचप्पत्ति मिह ||१०|| [३] जं पारिज कुमारु महिमण्डलें तं शोसरियाणाम् । जिह करें महन्दु तिह समरे सरहसु मिडिउ रामु ॥१॥ रामणराम-जुना माविमद्दउ । सरहम णिम्भर पुनय-विसहल ।।२।। मच्छर-गण-मण-णपणाणन्द्रहुँ । अफाकिय-सुर-मुन्दुहि-साईं ॥३॥ सन्धिय-सर-वविय-सिकारहुँ । वारवार-जिण-णामुचारहुँ ।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy