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________________ छासहिमो संधि किसीने आग्नेय बाण छोड़ा और किसीने गरजता हुआ कारण बाण | किसीने झरझर करता हुआ वायव्य वाण, किसीने धूधू करता कुलपर्वत, किसीने भयभीषण वदण्ड फेंका उसने महीधरके सौ टुकड़े कर दिये। किसीने आशीविष नागपाश फेंका। किसीने साँपोंका नाशक गरुड अस्त्र फेंका । उस भयंकर युद्ध में कमल नयन लक्ष्मण पर, इन्द्रजीतने दुर्दर्शनीय भीषण रजनी-शख छोड़ा, जो प्रचण्ड वीरोंका सम्मोहन करने में समर्थ, कंकालकी तरह भयंकर, अन्धकारसे परिपूर्ण और नापते हुए प्रेतोंसे मुखर था। तब लक्ष्मणने रातके अन्धकार पटलको नाश करनेमें समर्थ दिनकर अब छोड़ दिया। रावणके पुत्रने नागपार फिरसे फेंका, परन्तु लक्ष्मणने गारुड़ विद्यासे बसे कर दिया ।१- [११] लक्ष्मणने रावण पुत्रको रथहीन बनाकर पकड़ लिया। उधर आरक्त मुख रामने मेघवाइनको पकड़ लिया। एक ओर निशाचर ईष्यांसे भर कर हनुमानको व्यस्त किये हुए थे । इसी अन्तरालमें कुम्भकर्ण रामके तीरोंसे बुरी तरह छिन्न-भिन्न हो गया, गनीमत यही समझिए कि किसी प्रकार बच गया। उसके देखते-देखते रावणको सेना बन्दी बनाकर भामण्डलको सौंप दी गयी । और भी दूसरे जो भी लोग जिससे लड़े, वह उससे उसी प्रकार जीत गया,जिस प्रकार सिद्ध परमपदको जीत लेते हैं। इतने में भयभोषण विभीषणने रावणके धनुषके टुकड़े-टुकड़े कर दिये । धनुषके गिर जानेपर, श्रीके अभिमानी रावणने अपना शूल असा चला दिया। परन्तु विभीषणने अपने उत्तम तीरोंसे उसे भी उसी प्रकार बिखेर दिया, जिस प्रकार भूखे भूत बलिके अन्नको। तब क्रुद्ध होकर दशाननने अपने हाथमें शक्ति ले ली, मानो वह अपनी शक्तिका
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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