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________________ १६२ केण वि मेल्लि अग्गेट वाणु । केण वि चाय ददन्तु । कुलिम-दण्ड केण च मय भी कंग वि सोविसु णाग-वासु । सहि तेहऍ र कमलेश्खणासु । दुइरिसणु भणु स्यणि-अन्धु । कमाल करालु तमाल- बहलु । लक्षणेण मेलिज दिणयरत्धु । पउमचरिय दहमुह-सुऍण सविण दाहिणऍ करें सम्पाइप ( ? ) केण वि वारुणु गलगजमाणु ॥२॥ केण वि कुल-प धुबुवन्तु ॥३॥ । किल महिहरस्थ लय-खण्ड-खण्डु ॥ ४ ॥ केण विंग पण्णय-विणासु ॥ ५२ ॥ इन्द्रणालि कक्खणासु ॥ ६॥ सोण्डीर-वीर-मोहण - समरथु ||७|| णश्चन्त पेय वेयाल- मुहल || णिसि - तिमिर-पडल-णालण समस्धु ॥९॥ घता नाग बासु पुणु पेलियउ । गारुड - विज तासियत ||१०|| [1] विरहु करेवि धरिव दहमुह णन्दणु पारायणेष्ण | तोयदवाहणी व बलए वें विष्कुरियाणमेण ॥१॥ एताएँ विहल वसु-मच्छरेण । साणन्तरे रामे सरहि छिन् । पेक्खन्सहों वहाँ रावप्य-वतासु । अवरो कि को दि ओ भिडिउ जासु एस विसाव भय भीमेण । परियलिए चायें सिय- माणणेण 1 सखरै हिंसं पि अक्ल केंम । रोसिड दहगीत विलक्ष्य ससि । किर आयामिज जिसियरेण ॥ २ ॥ जिन कवि किखेलें कुम्भयष्णु ॥ ३ ॥ वन्धेवि अप्पिड मामण्डला ॥४॥ । परमप्पड व सो सिद्धु बासु ||५|| रावण अणु विष्णु विडोसणेण ॥ ६ ॥ आमेलि सूल दसाणणेण ॥७३॥ वति भुक्तिर्हि भूएहिं प्रेम ||८|| जावह दरिसाव णिमय सचि ॥९॥ चता रेहइ ककसिा । या मवित्ति अमदहों ॥ १० ॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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