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पडमचरित वाणासणि-सम्न्छाइय-गयण? पहरे पहरे पफुल्लिय-षयण ॥५॥ तो एत्यन्तरे गय-सय-याम । किन निरि -बार | पहिलड रहवर रासाह-वाहणु। बीयउ सरहसु सरह-पवाहणु II || तल्या तुम-तुराम-चबल। चउथळ धोरोरालिप-मयगलु ॥८॥ पञ्चमु वर-सब्दूल-णिउता। छहउ केसरि-सय-सक्षुप्तड ।।९||
पत्ता किङ्किणि-मुहल पल-बाहण धुव-धवल-श्रय । दुपपुस जिह छ वि रहवर णिफल गय (1)
[५] रह छह छह धणूणि छ छत्तइँ वि छिण्णई हलहरेण ।
तो विण दिया पुद्धि विजाहर-पुर-परमसरेण ॥३॥ वेषिण वि अवरोप्पर सामरिस। वेणि वि पउरुसें साहसे सरिस ।। पिण वि सुर-समर-सएहि थिर । वेणि विक्षिण-णामें णमिय-सिर ।।।। वेणि वि पहु कह-णिसियर-धयहुँ । जिह दिसाय सेस-महग्गय हुँ ।।३।। जिणइ ण जिमह एको घि जणु । गउ ताम दिवायरु अत्यवः ॥५॥ विणिवारिंउ रावणु राहण। 'अन्धार का महाहवेंग ॥६॥ ग वि नुहुँ महुँ ण चि हवे तुझ भरि। लइ गिणय-णिय-णिकय जाहुँ वरि ॥ तें चयगे रणु उघसझरेंथि। गठ लाहिज कलपल कवि 1८|| सीराउहो वि परियाच प्तहिं । सत्तिएँ णिमिण्णु कुमार जहि ॥५॥
पत्ता तं णिदि वस्तु सुरकरि-कर पवरुधुएँहि ॥ पिडित महिहिं सिरु पहणन्तु सई भु ऍहि ॥१०॥