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________________ 1५९ कासटिमो संधि तो तुम्हारा अस्तित्व, जलकण या तुषारकणसे अधिक नहीं । सच है एक समय तुम गन्धगज थे, परन्तु इस समय तुम्हारे समान गधा भी नहीं है, जिसने पहाड़ के समान अपना चरित खण्डित कर लिया, वह जीकर क्या करेगा यह सच है कि मैंने तुम्हारा खम्भा उखाड़ा है, लो अब देखता हूँ कि तुम बिना पड़े कहाँ जाते हो ॥१-१०॥ यह सुनका पारणको साना पाया। दार यश के लोभी उसने अपना अर्धेन्दु तीर छोड़ा। वह तीर मुनियरकी तरह मोक्षके लिये लालायित था, वृक्ष विशेषकी तरह अत्यन्त तीखे पत्रसे युक्त था, काव्य-बन्धकी तरह, तरह-तरह के वणोंसे सहित था, कुलवधूके चित्तकी तरह अजेय था, मुक्त उस तीरने किसी तरह विभीषण को आहत भर नहीं किया। विभीषणने भी रावणके वजको खण्डित कर दिया। तब उसने भी विभीषणके धनुषके दो टुकड़े कर दिये । तब उन्होंने एक दूसरेको द्वन्दू युद्धके लिए सम्बोधित किया। फिर क्या था ? लक्ष्मण मन्दोदरीके पुत्रसे भिड़ गये । कुम्भकर्ण और हनुमान, राम और मेषवाहन, नील और सिंह तट, दुद्धरिस और विकटोदर, केतु और मामण्डल, काम और हदरय, कालि और वन्दनगृह, कन्द और मिसाजन, शम्भू और नल, विश्न और चन्द्रोदर पुत्र, अम्बू और मालिन्द, धूम्राक्ष और कुन्दाधिप,
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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