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कुमुअ-महकाय सत्-अमघण्टा |
पउमचरिउ
रम्म
सार मारिच सारण- सुमेणाहिवा ।
सुन पचण्डालि सम्झन्छ- दहिमुह शिवा ॥१३॥
घत्ता
भुअणेफेक पहाणार्हे । गणगणेपणु राणा हैं ॥ १२ ॥
विहि माहि सुग्गी अमिया ॥१०॥
अनेक मि के सक्किय
केण वि समरे जोवित जमह
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केण वि को विदओ 'मरु सम्मुहु याहि थाह' । क्रेण वि को विसु समरण 'रहरु चाहि वाहि ॥॥१॥
केण त्रि को वि महा-सर-जाएँ । छाइड जिह सु-कालु पुकाळें ||२|| केण वि को त्रिभिष्णु सच्छ-स्थलें । पडिउ धुलेवि को विमति मण्डलें ॥३॥ केण वि कहाँ विसरासणु ताडिद । णं हेहा मुदु हिपबर पाहिङ ॥
केण त्रिकों विकउ णीवति । केण वि कहाँ वि महदुर पाडित । केण वि दन्तिदन्त उप्पाहि । केण वि झम्प दिष्ण रिज- रहबरें | क्रेण चि कहाँ षिसी अच्छोडिड
चलि जिह दस दिसेहिं आवट्टिङ ॥ ५ ॥ णं भउ माणु महत्फर साहि ॥ ६ ॥ नाव जसु अप्पण समावि || || गरुडें जिह भुङ्ग भुषणन्तरें || ४ || णं अवराह रुख फलु सोहि ॥
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घन्ता
ferg fear हिट थिरु । पन्हों उरु सामियहाँ सिरु ॥१०॥
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केण वि कहाँ वि सुक पण्णी पारवर पुनणिजा
केण वि गुलगुल म्ति मायकी केण वि सीह विजा ॥१॥
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