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________________ १५८ पउमचरिउ जॅमइँ लड् एष मि सवड जि सि तुहुँ गन्धन्तस्थि । गिरि-समु पण्डित चारिंतु जेण । एवर्हि त सरिस्टड खरु वि णस्थि ॥१८॥ किं कोरड् जीवन्तेण संण ॥ २ ॥ पञ्जा इउ खम्भु उप्पाडियउ । केस जाहि पाडियउ ॥ १० ॥ [ . ] ८ संणिसुणेवि वयणु दहवयणं अमरिस-कुद एणं । मेल्लि अद्वयन्तु समरङ्गणै जय-जल- -पणं ॥ १ ॥ सुणिचरिन्दोष सरु मोल-पय-ओ | तरु विसो व अ-तिक्ख-पय-सओ २ ॥ कब्द- चन्धो व वहु-बण्णवण्णभुओ । कुलबहू-चित्त-मग्गो व सुजुभो ॥३॥ सुप्रमाणेण कह कह बि उ भिण्णओ । तेण तस्स विधभो णवर उच्छिष्णओ ॥ ४ ॥ रावणेण वि धणु समरें दोहाइयं । ताम्ब सं दन्द-ज्नं समोहाय ॥५॥ मिडिय मन्दोदरी-राणय-णारायणा । कुम्मण्णाणिकी राम-घवाणा ३१ गोल-सोहयदि-दुसरिस-विडोश | केद-भामण्डला काम दिवरह वरा ॥७॥ काखिन्दणहरा कन्द- भिलक्षणा । सम्भु-ल विग्ध-चन्द्रमराणन्दणा ||४|| जम्बुभाखिन्छ धूमवण-कुन्दाहिना । भासुरङ्गा मयय-महोपर णिवा ॥९॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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