SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचसहिमो संधि १५ ६] इस प्रकार किष्किन्धाराज पकड़ लिया गया, परन्तु मेघवाहन और भामण्डल में 'तुमुलयुद्ध होने लगा। से आपसमें भिलाई। जनमें युद्ध, उपर उभ होता चला गया, उसीप्रकार, जिस प्रकार नदीका प्रवाह धीरे-धीरे तेज होता आता है। महागजोंके भारी शरीर कीजने लगे। उद्धत धवल छन्न गिरने लगे। महारथोंके अश्व और पहिये लोट रहे थे। बड़े बड़े अश्व चकराकर गिर रहे थे। कवच फूट रहे थे, तलवारें टूट रही थीं। धड़ नाच रहे थे। उनके हाथों में तलवारें थीं। मेघवाहन ने, युद्ध में क्रुद्ध होकर आग्नेय बाण छोड़ा। मुक्त होते ही वह एकदम धकधकाता आया, आकाशमें ऐसा लग रहा था मानो अंगारे बरस रहे हों। तब भामण्डलने वारुण अस्त्र छोड़ा, मानो इन्दुने पर्वतपर अपना धन छोड़ दिया हो, जब पानीसे आग्नेय बाणकी जलन शान्त हो गयी, तो मेघवाहनने अपना नागबाण छोड़ा। उसके लम्बे विशाल तीरोंसे भामण्डल इस प्रकार घिर गया, मानो साँपोंने मलयपर्वतको घेर लिया हो ॥१-१०॥ __ [१०] एक तो तारापति विशालबाहु सुग्रीव जीता जा चुका था, अब दूसरे जब जनकसुत भामण्डल भी जीत लिया गया, तो रामकी सेनामें खलबली मच गयी, मानो समुद्र का जल पवन से आन्दोलित हो उठा हो। इसी बीच में हनुमान और कुम्भकर्ण में भिड़न्त हो गयी। प्रहार करते हुए उनके, शत्रुओंका विदारण करनेवाले अनेक अस्त्र जब नष्ट हो चुके थे तो दोनों में बाहुयुद्ध होने लगा। उस समय ऐसा लगा मानो दो प्रचण्ड महागज ही आपसमें लड़ रहे हो। निशाचरने हनुमानको इस प्रकार पकड़ लिया, मानो जिनवरने सुमेरुपर्वतको उठा लिया हो। उसे पैरोंसे दबोचकर ऐसे उछाल दिया, मानो पहाड़के शिखरपर उसे घढ़ा दिया हो। कुम्भकर्ण से लंका नगरीकी
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy