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________________ १४४ पटमचरिट धुत्तत्तणेण जोसङ्घ जिह पत्ता समर-सएहि भाबमाण । रिउ विवत्यु किउ अऍण ॥५॥ जं किट विवरधु रणे रवणिया। संलग्गु हसेव" सुर-णियह ॥१॥ रावण-भन्तेउरु लखियड। विड वझवषणु दिहि-वजियउ ॥२॥ सन्धबइ जाम्ब गिय-परिहणउ। माला विमाशु गउ पणउ ||३|| तहिं अवसर मा मण-मण । जयकारिउ रामु विहीसणे ॥४॥ 'माई देष भिषम्सउ पेक्खु रणे । जिह जमणु जलन्त सुकवणे ।।५।। जई मइलमि वयणु ण पर-बलहाँ। तो पइसमि.मदएँ सलहौं' ।।६।। गलगजें वि एम णिसायरेण । किड करें कोवण्डु अ-कायरेण ||७|| सपणाहु लनड गहपरे चरिठ। रावण-गन्दशहाँ गम्पि मिडिउ ॥८॥ हकार पहरह णिन्दइ वि। पण घणवाहणु इन्ट वि ||९|| 'मुहुँ अम्हहँ चन्दण-जोग्गु किट। तिहिंसन्महि परम-मिणिन्दु जिह।।१० पत्ता जो जणण-समु तहाँ कि पायें चिन्तिऍण । किर कवणु जसु जुमन्तहुँ सहुँ पिसिएंण' ॥१५॥ [ २ ] रणु पित्तिपण सहुँ परिवरेंवि। चिण्णि वि कुमार गय ओसरवि ।।। एक मामण्डल धधि णिउ। अण्णे तारा-पाणपिउ ।।२।। कु कर्णेवि को वि क सकियर। अम्बरें अमरहिं रूपल किया ॥३॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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