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परमपरिब
किहिम्ध-गराहिउ धरिड जाम । घणवाहण-भामण्डकहँ हाम ॥१॥ अमिठु परोप्परु जुज्य धोरु।। सरि-सोच-सहत्तर-पहर-योर ॥२॥ शिमन्त-महग्गय-गरुन-गत्तु । णिवरम्त-समुयुध-अपल-सु ॥३॥ लोहन्त-महारण-हय-रहनु । घुम्मन्त-पडम्त-महासुरा ॥४॥ फुटम्स-कवर तुत-सग्गु । पाचन्त-कवन्धय-असि-करणु ॥५॥ आयामेंवि रण रोसिम-मणेण । अग्गेउ मुई घणवाहणेज ॥६॥ आमेलिउ आइउ धगधगन्तु। अझार-बरिसु पहें दक्लवन्तु ॥७॥ पारुणु विमुक भामण्डलेण। गिरि, वज्जु भाषण ॥॥ उल्हाधिउ जलणु जलेण अंज। सरु णाग पासु पम्मुकुसं जें ॥५॥
पत्ता
पुष्फवह-सुब परिवेलियड
दीहर-पवर-महासहि। मलयधरेन्दु व विसहरैहि ॥१०॥
[१. 1 जं जिउ ताराव पवर-भुट। अण्णु वि भामण्डलु जणय-सुड ॥1॥ तं भग्गु असेसु घि राम-बलु। णं पवण-गलस्थिर उबहि-जल ।।२।। एसह वि ताम समावरिय। मरुणदण-कुम्भयण मिरिय ।।३।। पहिरन्सहुँ वइरि-वियारणई। णितिय अणेयर पहरणई ॥३॥ पुणु बाहाब लग किह । उमड-सोश वेयपढ़ जिह ।।५।। हणुवस्तु लड्ड स्यणीयरेण । मेरुमहागिरि विणकरेंग ॥३।। घरगहि धरै वि अवापर। णं गिरि-सिहरेण चहावियउ ॥७॥ पुणु छका-णयरिहि उबलिउ। तारा-तणएण ताम सहित ॥८॥