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________________ १३६ पडमचरित जउ जाउ स-मकह दे दिहि। तब तब ज पा गं पछम-विहि ॥६॥ कौविवाएकवि मिडिऍपणछ।की विठिठ भवठम्में विभाणि-बदछु।।७।। को विकह पि कलमणिरुणिला को विदूहों में पार्ज विमुच ।।८॥ घसा सुग्गीव-यले गरउ हुअउ हलफल उ । णं अग्गहरें हरिथ पटक राउला ॥५॥ [५] उम्बेडाथिउ हशुवन्तु हिं। पर सकिड वयणु विणिऍवि तेहिं ।।। परिचिन्तित 'रुद्ध आहउ विणासु । किय()षलु जै रेसा एकु गासु' ॥२ सहि अवसर धाउ अमियविन्दु । पहिमुह माहिन्दु महिन्दु इन्तु ॥३॥ रहसणु णन्दशु कुमउ कुन्दु। महकन्तु महोहि महसमुदु ॥३॥ कोकरहलु सरल सर भारु। सुग्गीय मछु भयकुमार ॥५॥ सम्मेउ सेट ससिमण्डलो वि। भन्दाहु कन्तु मामाली वि ॥३५ पिटुमइ वसन्तु वेळधरो वि। वेल पा सुवेलु शयम्धरो वि ॥७॥ भापा वि वरिहि तणड सेण्णु । समकडिङ सहि कुम्भयन्शु ८॥ घता एकलऍण वलु वासियड तो विचलते सम्मुण । गम- व पाणणेण ॥९॥ _ [५] जं खत्तु मुवि कहलहि। समणि पेहाविदहि ॥३॥ त हकलि-गयणाणन्दशैण। संवि रपणालप-पदणेण ॥२॥ दारुणु धम्भण-मोहण समस्थु । पम्मुख दंसणावरण-स्थु ३३।। सोवाविड साहणु सपालु रोण। गंगा भत्थरों विणपरेण ॥४॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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