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________________ पंचसविमो संधि स्थानसे च्युत हो गया था। वह ईर्ष्यासे जिसके ऊपर दृष्टि डालता उसपर मानो प्रलयकी वर्षा ही हो जाती। कोई उसकी वावीसे, और कोई उसकी भौंहोंसे नष्ट हो रहा था । कोई परवीकी पीठको पकड़ कर रह जाता। कोई उसके कटाक्षको देख कर ही जा छिपता और कोई दूरसे ही उसे देखकर अपने प्राण छोड़ देता। सुप्रीवकी सेनामें इससे ऐसी भयंकर हडकम्प मच गयी, मानो राजकुलके अप्रगृहमें हाथी घुस आया हो॥१-९॥ [४] जिन लोगोंने हनुमानको बन्धनमुक्त किया था, वं कुम्भकर्णका मुख तक देखनेका साहस नहीं कर पा रहे थे । के मन ही मन सूख रहे थे कि लो अब तो विनाश आ पहुँचा। वह समूची सेनाको एक कौरमें समाप्त कर देगा। ठीक इसी अवसर पर अमृतबिन्दु, दधिमुख, माहेन्द्र, माहेन्द, इन्द्र, रनिवर्धन, नन्दन, कुमुद, कुन्द, मतिकान्त, महोदधि, मतिसमुद्र, कोलाहल, तरल, तरंग, तार, सुग्रीव, अंग, अंगदकुमार, सम्मेत, श्वेत, शशिमण्डल, चन्द्राङ, कन्द, भामण्डल, पृथुमति, वसन्त, वेलन्धर, बेलाम, सुबेल और जयन्धर आदि शत्रुसेनाने मिलकर कुम्भकर्णको घेर लिया। परन्तु उस अकेले वीरने ही सम्मुख आकर समस्त सेनाको इतना प्रस्त कर दिया, मानो सिंहने किसी गजसमूहको भयभीत कर रखा हो। ॥१-२॥ [५] जब क्रोधाभिभूत कपिध्वजियोंने क्षात्रधर्मको ताकपर रखकर कुम्भकर्णको चारों ओरसे घेर लिया, तो कैकशीके नेत्रोंको आनन्द देनेवाले रत्नाश्रवके पुत्र कुम्भकर्ण ने, अपना दृष्टि-आवरण नामका अस्त्र छोड़ा, वह अस्त्र स्थम्मन और सम्मोहन, दोनोंमें समर्थ था। उसके प्रभाव से समृषी सेना सो गयी मानो सूर्यके अस्त होनेसे संसार ही सो गया हो।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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