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________________ १३१ पंचसटिमो संधि एसा एक भी रथ नहीं था जिसका पहिया टूटा-फूटा न हो। एक भी ऐसा गोदा नहीं था जिसक' शीरमान ज हुआ हो। ऐसा एक भी विमान नहीं था जिसमें तीर न लगे हों। सेनासे लड़ता भिड़ता, हनुमान जहाँ भी निकल जाता, युद्धभूमि, वहाँ धड़ोंसे पट जाती ॥१-९|| [2] जब बड़े-बड़े योद्धा नहीं जीत सके तो हनुमानको गजघटाओंने घेर लिया। उनके कुम्भ स्थल, पर्वतशिखर के समान गम्भीर थे । ऐसे सिर जिनसे अनबरत मदजल बह रहा था । भौंरोंकी सुन्दर झंकार हो रही थी। घण्टोंके टंकारसे वे भयंकर लग रहे थे। वे अपने कान फड़फड़ा रहे थे। उनकी सूड़ें उठी हुई थीं । अंकुशसे रहित, वे अत्यन्त मतवाले हो रहे थे । जब युद्धभुखमें पवनपुत्र इस प्रकार घिर गया तो वानर योद्धाओंका समूह दौड़ा। वहाँ जाम्बवान नील सुसेन हंस गय गवय विशुद्धवंश गवान सन्तास विराधित सूर ज्योति पीतकर किंकर लक्ष्मीमुक्ति चन्द्रप्रभ चन्द्रमरीच रम्भ शार्दूल विपुल और कुलपवन स्तम्म थे। इन योद्धाओंने हनुमानको बन्धन हीन बना दिया,ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार संसारमें जीव अपने गुण उसे छोड़ देते हैं ॥१-२॥ [३] क्रुद्ध युद्धजन्य उत्साहसे भरे हुए कपिध्वजियोंने शत्रुओंको खदेड़ दिया । ज्याकुलतासे वे नष्ट होने लगे। उनकी तलवारें छूट गयीं। वे एक दूसरेके चरणधिह रौंधने लगे। अपनी सेनाको इस प्रकार नष्ट होते देखकर कुम्भकर्ण ने राषणकी जय बोली । भयभीषण, विशालकाय वह इस प्रकार दौड़ा मानो रामकी सेनापर विशाल काल ही टूट पड़ा हो । वह युद्ध भूमिमें नहीं समा रहा था, मानो मन्दराचल ही अपने
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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