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पउमरिक
हणुबन्से बुश्वइ ‘माम माम । नुहूं अच्छहि जहिं सोमिसि-राम ॥१॥ हर एषु बहुचमि णिसिंगरहुँ। जिह गरुडु बसेसहुँ विसहराहुँ ॥२।। जिह धूमकड जगं वराहुँ। पयाल जिह जर-तरुवराहुँ ॥३॥ जिह पलय पहअणु जालहरा । सुर-कृलिस-पादु जिह गिरिवरा? ॥१॥ बलु पं वणु ममि रसमसन्तु । वंमुज्जल-मूल-तरुक्षणम्सु ॥५॥ रमणीयर-तरुवर णिहलन्तु । भुव-दण्ड-खण्ड-शालाहणन्तु ॥६॥ सुललिय-करयल पछय लुलन्तु । गायलि-कुसुम समुच्छलन्तु ॥७॥ धय-छत्त पसर मिक्खिरन्तु । गवर-सिर-फल-सहसई खुशम्तु ॥८॥
पत्ता
गळग जमिनमण-णन्दश सकपन स-गउ स-सन्दणु । पर-वलें पइसरह मान्चल विल्ों जेम दावाणलु ।।५।।
[८]
पढम-भिडन्ते सेण वाहणा ।
यवरेण णवराहनी हो। रहावरेण खय-सूरहो रहो। णवरेण वयणुठमडो भयो। कश्यलेण सु-भयङ्करी करो। दारुणं कर्य एव स । सुहङ-सुहर सन्दाणवन्तयं ।
वासुएष-वल-
पलवाइणा ॥ गयवरेण यो भागमओ गी ||२॥ अयण जस लुखो धभी ॥३॥ पर-सिरंग एर-संसिरं सिरं ॥४॥ मब-कमेण स-परकमो कमो ॥५॥ हड्-रुण्ड-विच्या-सायं ॥६।। घोर-मारि-सम्पाणवन्तयं ।।७।।