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________________ चउटिमा मंत्रि सुनकर विधिराज युद्धमें कूद पड़ा। दोनोंकी मुठभेड़ होने लगी। विधि और वितापी दोनों ही क्रुद्धमना थे। दोनों ही युद्धप्रांगण में ऐसे उछल पड़े मानो प्रलयकालके मेघ हों। जैसे मेघों में जलकी धारा होता है, वैसे ही इनके पास तारोंकी याणावलि थी । जैसे मेघों में इन्द्रधनुष होता है, वैसे ही इन्होंने भी अपना इन्द्रधनुष तान रखा था । मेघों के समान, वे दोनों भी बिजलीके समान चमक रहे थे। मेघोंके समान, उनकी ध्वनि सान्द्र थी। मेघोंकी ही भाँति, वे सूर्यक तेजको ठगने में समर्थ थे। दोनों नयी-नयी विजयोंके लोनी में विधिकलने साइबर भर कर वितापीको मार गिराया, उसी प्रकार जिस प्रकार वनके आयातसे पहाड़ टूट गिरता है ।।१-९॥ [] वितापीके इस प्रकार आइत होने पर विशालतेजने जरा भी देर नहीं की। वह क्रोधसे भड़क उठा। वह विधिराज से भिड़ने वाला ही था कि शम्भुराजने उसे ललकारा। फलतः वे दोनों आपसमें भिड़ गये। उस समय लगा कि पहाड़ ही पराक्रम पूर्वक आपसमें भिड़ गये हों। इसी अन्तरालमें शम्भुराजने जरा भी देर नहीं की। उसने शक्तिस विशालतेजको छातीमें घायल कर दिया । वह प्राणहीन होकर धरती पर गिर पड़ा । जब सुप्रीवने देखा कि उसकी सेना धराशायी होती चली जा रही है तो वह तमतमाकर मैदानमें निकल आया, "मुड़ो-मुडो" की ध्वनिके साथ वह ऐसा उछला, मानो निशाचरोंका विनाश आ गया हो, मानो मृगक झुण्डोंमें सिंह हो, मानो त्रिभुवन चक्र में कालदण्ड हो, मानो जलधर समूहमें प्रलयपवन हो । जब विद्याधरवंशका प्रदीप सुग्रीव संग्राममें भिड़ गया तो पवनसुत हनुमान भी अपना रथ हाँक कर, दोनोंके बीच में आ गया ॥१-२||
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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