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________________ परमपरित ते विहि-विताघि माटु मगा। उत्थरिय स-मच्छा वे विजणा ॥५|| गं पछय-का पछयम्बुहरा । बिह ने तिह सर-धारा-चपरा ॥६॥ जिह से तिह परिचकलिप-अणु। बिह से सिद्ध विजुज्ज लिय-तणु ।। जिद्द ते विह मीम-णिणाम-करा। मिह ते तिह सूर-इशाय-हरा ॥८॥ पत्ता विहि-रापं अमरिस-कुन्दरण अहिपब-जयसिरि-लुखुएँण | पारित वितावि णारेण गिरि जिह क्य-णिहाऍण ||९|| - [६] जं हज वितावि तं किड खेड। कोवग्गि-पलितु विसाकर्तड ॥1॥ बिहि-रायहाँ मिड ण भिवइ जाम । हकारिउ सम्भु-णिवेण ताम्ब ॥२॥ ते थे वि परोप्परु अमिदन्ति । गिरि स-परकम श्रोषरन्ति ३॥ एल्धन्तरें सम्मु ण किउ खेत। उ सत्तिएँ मिष्णु विसासेठ ॥४॥ ओपक्षिा महियले विगय-पाशु। णिय-साहणु पेको विलोमाणु ॥५॥ सुरगीउ पधाइउ विप्फुरन्तु । लइवलहाँ पलहाँ' समु उस्थरस्तु।।६।। गं णिसियर संगहों मइयवटु । णं केसरि मिग-जूहहाँ विसष्टु । ।। णं तिहुयण-चाकहाँ काल-दण्ड । णं जलार-बिन्दहीं पश्य-चण्ड ।।। पत्ता विजाहर-बस-पईयहाँ भिडमाणहाँ सुग्गीवहाँ। घिउ अन्सर वाहिय-सन्दणु ताम पहलण-जन्दश ॥५॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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