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________________ हिमो संधि १२३ [७] हनुमान ने कहा, "हे आदरणीय, आप वहीं रहिए जहाँ लक्ष्मण और राम है। मैं उसके ही निशानोंके लिए काफी हूँ। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार समस्त सर्पकुळके लिए गरुड़ काफी होता है, नरश्रेष्ठ के लिए धूमकेतु, पुराने वृक्षोंके लिए प्रलयकी आग, बड़े-बड़े पहाड़ोंके लिए इन्द्रका व होता है । मैं सेनाको नन्दनवन की तरह रौंद डालूँगा । उज्वल वंशको पेड़ोंकी जड़ोंकी तरह उखाड़ दूँगा । निशाचर रूपी वृक्षों को नष्ट कर दूँगा । भुजदण्ड रूपी प्रचण्ड डालोंको आइत कर दूँगा । सुन्दर हथेलियों रूपी पत्तोंको नोंच डालूंगा । सुन्दर सुमनोंकी भाँति सुन्दर नाखूनों को उदाल दूँगा । ध्वजपत्ररूपी पत्तोंको बखेर दूँगा । श्रेष्ठ मनुष्योंके फलोंको तोड़-फोड़ दूँगा । गर्जना के अनन्तर अंजनापुत्र महाबली हनुमान् कवच अश्व और रथ के साथ शत्रुसेनामें घुस गया, वैसे ही जैसे महागज विन्ध्याचल में घुस जाय ॥११- ६|| [4] रामके पक्षपाती हनुमान्ने अपनी पहली भिड़न्तमें अश्वसे दूसरे अश्चको आहत कर दिया | गजवरसे आगत हाथीको चलता किया। रथबरसे प्रलयसूर्य के रथको नष्ट कर दिया। ध्वजपटसे यसके लोभी ध्वजको नष्ट कर दिया | नरवरसे वचनोद्धत योद्धाका काम तमाम कर दिया । शत्रुसिर से शत्रुकी प्रशंसा करनेवाले सिरको समाप्त कर दिया। करतलसे भयंकर महान हाथको काट बाला । यांजाके पैरसे किसी पराक्रमी पैरको परिसमाप्त कर दिया। इस प्रकार हनुमानने युद्धको एकदम भयंकर बना दिया | वह हड्डियों और धड़ोंके ढेरोंसे भरा हुआ था । सुभटों, गजघटाओं और रथों एवं अश्वोंका वह अन्त कर
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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