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________________ तिलद्विमो संधि १०९ आगे बढ़ाया और वे दोनों युद्धमें जा भिड़े, उस युद्धमें, जिसमें सघन गजघटा लोट-पोट हो रही थी। जिसमें पथ, धड़ों और हड्डियों से बिछे पड़े थे। रथ तड़-तड़ करके टूट रहे थे । अश्व आहत थे । इरसे उनकी गति अवरुद्ध थी । दानव समूह विदीर्ण हो रहा था। पट-पट और भेरीकी गम्भीर ध्वनि गूँज रही थी। तीखी पैनी तलवारें उनके हाथोंमें थीं । धनुर्धारियोंकी टंकार और आस्फालन से कान बहिरे हो रहे थे, सुरसुन्दरियाँ मंगल कामना कर रही थीं। उस युद्धमें दुरित जा कूदा, वह अत्यन्त दुर्दर्शनीय था । उसकी आँखें मत्सरसे भरी हुई थीं । दुरितने सुतके रथसे रथ भिड़ा दिया। और उसके समूचे शरीर पर दरले बाधा पहुँचाया। उसने भी दुरितके पैरों पर चोट कर इस प्रकार आहत कर दिया, मानो सन्धिके लिए दो पदको अलग-अलग कर दिया हो । राजा दुरित, अपने ही श्रेष्ठ रथमें झुक गया । ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार दुर्षातसे पेड़ नष्ट होकर गिर जाता है ॥१-१०॥ J [१०] राजा दुरितके धराशायी होने पर, राम और रावणके दूसरे दो और अनुचर व्याघ्रराज और उद्दाम प्रेमके साथ जा भिड़े। वे दोनों क्रुद्ध होकर एक-दूसरेके विरुद्ध हो उठे। दोनों ही पावसकी तरह उछल रहे थे। आपसमें एक दूसरे पर अ फेंक रहे थे। दोनों दुर्द्धर दानवोंका संहार करने में समर्थ थे । खोटो स्त्री समान, दोनोंके स्वभाव चंचल थे। स्त्रियोंके नखोंकी भाँति उनका स्वभाव चीरनेका हो रहा था । दुर्जन के मुख की भाँति, वे वेधनशील थे। विपफलकी भाँति वे लोगों को बेहोश बना देते थे । अबके जालसे आकाश तल छा गया । मानो मोहान्धकारसे अज्ञान भर गया हो। हाथसे अपने लम्बे धनुषको चढ़ाकर, व्यामने आग्नेय तीर छोड़ दिया। तब उद्दाम
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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