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________________ पउमचरित वारुणु उद्दामें आमेलिउ । अणु उनामें मुछ महीहरु । वाप्रयु विग्यरेण पहिउ ||८|| जागर-बुकरन्तु सप अन्दरु ।।९।। घत्ता सं विधैंग मुमुमूर वि विग्यु करेपिशु समर-मुहें। जीविड खुछु कयन्त-मुहें ।।१०।। [11] जंदारिय महाहवे वावरत सिग्वे । हय-सन्ताव-पहिय-भाकोस-दुरिय-विग्चे ।।१।। तं एबरड़ दुक्खु पेक्वेष्पिणु । रघि अस्थमिउ णाई असहेप्पिगु।१२॥ अहवाइ णह-पायवहाँ घिसालहों। सयल-दियन्तर-दीहर-डालहो ॥३॥ जबदिस-रलोकिर-उपसाहहाँ। सम्झा-पल्लव गियर-सपाहहाँ ||१॥ बहुवच (१)-म-एस-सम्छाथहीं। गह-गायन-कुसुम-सङ्कायहाँ ॥५॥ पसरिय अन्धपार-ममा उलहों। तहाँ भायास-दुमहों वर-विडलहौं ।।।। णिसि-गारिएँ स्वावि जस-ला। रवि-फलु गिलिंड णा नियम।। वहल-तमाल अगु अन्धारित। विहि मि वल जुझ गियारित ॥८|| वे वि वसई वाणिसुनिय-गतहैं। णिय-णिय-आवासही पस्थितहै ।।५।। पत्ता रावग घरे जय-तूर, अपमालियाई । राइन-व मुहा पाई मसि-मइलियई ।।१०।। पणिय को वि वीस कि दुम्मणो सि देव । जिसियर-हरिण-जूहें पहलरभि लोहु जेम' ॥1॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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