SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ पउमरिड ते भिदिय परोप्परु आहयणे । गर-हगड-हा-विरा -पहें। इय-हय-मय-तट-ण?-गमणे । पड-पटह-भेस्-िगम्मोर-सरें । अणुहर-टकार-फार-बहिर।। सहि तेह आह उस्थरिय ।. रहु रहहाँ देवि दुरिएण सुट। सेण वि खगर्ग बलणेहि हउ । दुग्धो-श्रद गिल्लोष्ट-घणें ॥२॥ सन्दाणिय-मग्ग-तासिरहें ॥३॥ दण-विन्द वन्दि-बहु-बिदवणे ॥३॥ तिलग्ग-स्वग्ग-उग्गिण्णा-करें ॥५॥ सुरवर-सुन्दरि-मङ्गल-गहिरें ॥५॥ दुप्पेष्ठ अच्छि-मच्छर-मरिय ॥७॥ सवजिट असि-परेहि लुट ||८|| ण सन्धि-सि पय-छेउ किट ||५|| घसा বিশ্বাবিন্তু दुम्बाण णिय-रहवरे ओणल्लियट । तह जिह मजेवि घल्लियर ।।ion [.. दुरियाहि पलोधिए वे वि साणुराया। रावण-राम-मित्र बदाम-पग्ध-नाया ॥३।। वे वि विस्त कुद्ध बद्धाउस । बेषिण वि उरथरन्ति जिह पाउस।।२।। आमेडन्ति परोप्पर भस्थई। दुर-दणु- णिलण-समत्थई ।।३। कु-कलता इ चड्डुल-सहावई। कामिणि -गह अब चारण-भाव।। दुजण-मुह इव विन्धण सीलरें। विस-हक इव मुच्छाव ग-कील ।।५।। साइड णह-यस्लु पहरण-जालें। णं भवुहत मोह-समाले ॥ भायामबि मुख-फलिह-एडा। सरु बग्गेज विसबिउ बिस्छ
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy