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________________ तिसहिमो संधि उसने कहा, "मर-मर तू यदि अपने मनकी चाहता है तो अपना रथ आगे बढ़ा, वहीं क्यों बैठा है तू।" यह कह कर, उसने अपना धनुष बाण उसी प्रकार प्रेषित कर दिया, जिस प्रकार सज्जन पुरुष, असती स्त्रोको वापस कर देता है । परन्तु आती हुई बाण-परम्पराको उसने भी तीरोंसे वापस कर दिया, ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार आलिंगन देनेवाली परस्त्रीको सज्जन दूर कर देता है। तब उसने प्रयासपूर्वक एक बड़ी चट्टान उठाकर फेंकी, जो उसके पास उसी प्रकार गयी जैसे असती स्त्री परपुरुष के पास जाय । वह चट्टान सिंहनितम्बके वक्षस्थल में जाकर लगी । मूर्छासे विह्वल होकर गिर पड़ा। थोड़ी देर में वह उठकर फिर खड़ा हो गया, वह ऐसा लगता था मानो आकाशमें धूमकेतु ही हो। कोचक छाक करते हुए उसने एक योजनका विशाल पत्थर, पथिकको दे मारा। पथिक ने अपना गढ़ा छोड़ दिया । वह वेदनासे तड़फ उठा। उस आघात से पथिक और उसका रथ, दोनों चकनाचूर हो गये ॥१-१९।। १०५ [७] दनुका संहार करनेवाला नरश्रेष्ठ पथिक जब मारा गया तो रामके अनुचर नन्दनने रावणके अनुचर जरपर आकमण किया। अब जर और नन्दनमें युद्ध होने लगा। उन्होंने एक दूसरे पर रथ चढ़ा दिये। दोनों सुर-सुन्दरियोंके नेत्रोंको आनन्द देनेवाले थे। दोनोंने श्रद्धा-समूहको चकनाचूर कर दिया था। उनके मनमें था कि अभी हमें स्वामीके सैकड़ों प्रसादोंका ऋण चुकाना है । चारणजन उनके धनको मना नहीं कर सकते थे। दोनों स्त्रियोंके सघन स्तनोंका मर्दन करनेवाले थे। दोनोंने विजयलक्ष्मीका आलिंगन किया था। दोनोंने शत्रुदलके भण्डको चूर-चूर किया था। दोनों जयशील और अयश
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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