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________________ पउमचरित विशाहर-करण हि बावरेवि । चल-चल-पवाहिय-सन्दणेण रुहिरारुणु दारुणु रणु करवि ॥८॥ जर कह वि किलेसे गन्दणेण ॥९॥ पत्ता पीसेसहुँ विणिवाइव सुरहुँ णियम्स हुँ गयण न्य। कोन्ते हि भिन्दैषि बच्छ-पले || 10॥ . . [८] पडिए जर-णराहिके भीम-पहरणाहुं । रणु आलग्गु घोरु आकोस-सारणाहूं ॥१॥ ते समय-सम-भिष्टच-मिश्यि। णं मत महागर श्रोवडिय ॥२॥ णं सीह परोप्परु जणिय-कलि। शंभरह-णराहिव-वाहुबलि ॥३॥ णं आसगीव-तिविट्ट पर। _ विसुग्गीव-राम पवर ।।।। णं इन्द-पडिन्द विमुद्ध-मण । ते नि पहावा वे वि जण ॥५॥ भकोस सोसें मुा सरु । णं जिणवण मवगाहा ।।६।। मउद्धगें लागु नह) सारणहाँ। कुम्भे परसु वारणही ।।७।। तेण वि परिवरष-स्त्रयकरण ।। स्यणासब-णन्दण-किकरण ॥८॥ दुपार-पहरि-ओसारणे । धशु भायामप्पिणु सारनैण ॥९॥ पत्ता आकोसहाँ परिषद्धिय-कलयल-मुहल । सयबसुत्र खुडिउ खुरुप्प सिर-कमलु ॥३०॥ 8. [२] जं आकोसु पारिलो जय-सिरी-णिवासो। रहु दुरिएण वाहिओ सुब-गरादिवासी ॥१॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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