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पटमचरित
'मरु मरु जिह मणु सइयाँ वन्छहि । सिंह रह वाहि वाहि कि अच्चहि ॥२॥ जाणइ-जयणाणन्द-जगेर। कुद्ध पाय नउ सहय-केरा' |॥३॥ एम मणेवि सरासणि पैसिय। असह व सु-पुरिसण परिसिय ॥४॥ वेण वि स हि णिवारिष पन्ती। गं र-तिय आलिशा देन्ती ।।५।। पुणु आयामें वि मुक महा-सिल । णं पर-णरहों पामें गय कु-महिल ॥६॥ सीहणियग्यहाँ लग्ग उर-स्थलें । णिवदिउ मुच्छा-वियलु रसायलें ॥७॥ नेगा कहें वि नादिह : प धूमधड ।।।। कोब-हुवासण-धगधगमाणे। पाहणु जोगणेक-परिमाणे ॥९॥
घत्ता
आमल्लिड ते घाण
गउ णिय-आऊरियड। पहिउ म रहबर चूरियर ॥ ॥
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पाडि पहिय-णरबरे वणु-विमरोणं ।
जरु दहचयण-किकरो वरिउ पन्दणेणं ॥१॥ अभिटु जुइ जर-णन्दणाह। अत्ररप्पा बाहिय-सन्दणाहै ॥२॥ सुरसुन्दरि-णयाणन्दाहँ । विडमड-बद्ध-किय-कदमहणाहँ ॥३॥ सामिय-पसाय-सय-रिण-मणा । बन्दिय जग-अणिवारिय-धगाह ||४|| कामिणि-घण-यण-परिचष्याहूँ। जयलच्छि-बहुभ-अवरुण्डणाहूँ ॥५॥ परिपक्व भडप्फर-मञ्जपणाहैं। जयवन्तहँ अयस-विसजणा ॥६॥ णिय-सयण-मगोरह-पूरणाहूँ। उग्गामिय-कोन्त-प्पहरणाहूँ ।।१।।