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________________ सिट्टिमो संधि थे। अपने फैले हुए कानोंसे गज अपने स्थलको पोट रहे थे । भ्रमर उनपर गूँज रहे थे । कवच पहने हुए अश्व, पवनकी तरह उद्भट हो रहे थे। कम्पनशील शुभ्र ध्वजाएँ घूम रही थीं। मनकी भी गतिको छोड देनेवाले रथ उसमें थे । वह सेना यम, कुबेर और वरुणको चकनाचूर करने में समर्थ थी । बन्दीजनोंका जयघोष दूर-दूर तक फैल रहा था। आकाशमें देवांगनाएँ यह सब देखकर खूब सन्तुष्ट हो रही थीं। जब दशानन सेना के साथ कुछ कर रहा था तो मानो पूर्ण चन्द्र ताराओंके साथ घिरा हुआ हो ॥११०॥ [२] दशाननके तैयार होनेपर दूसरे योद्धा भी तैयारी करने लगे। उस समय ऐसा लगा मानो महाविनाश आनेपर महासमुद्र ही क्षुब्ध हो उठा हो । जम्बुमाली हर्ष के साथ तैयार होने लगा । डिंडिम, डामर, उमर और माली भी तैयार होने लगे । दूसरे और मद और मारीच तैयार होने लगे । इन्द्रजीत मेघबाहुन और भानुकर्ण भी तैयार होने लगे । अभिमानस्तम्भ 'जर ' भी तैयार होने लगा, पंचमुख, नितम्ब, स्वयम्भू और शम्भू भी तैयार होने लगे । उद्दाम चन्द्र और सूर्य भी तैयार होने लगे । धूम्राक्ष, जयानन, मकर और मक तैयार होने लगे। इसी प्रकार शत्रुसेना में वीर तैयारी करने लगे। अंग, अंगद, गवय और गवाक्ष जैसे धीर भी तैयार होने लगे । नल, नील, विराधित, कुमुद, कुन्द, जाम्बवान्, सुसेन, दधिमुख और महेन्द्र भी तैयार होने लगे। तारापति, तार, तरंग, रंभ, अभिमान के स्तम्भ, सौमित्र, हनुमान्, अक्रोश, दुरित, सन्तान, पथिक और राम सहित भा मण्डल भी तैयार होने लगे। इस प्रकार राम और रावण की सेनाएँ आपस में भिड़ गर्यो । उस समय ऐसा लगता था मानो प्रलयकाल में दोनों समुद्र आपसमें टकरा गये हों ॥ १-१०। १९
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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