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पदमचरित
तपविय कगण-विहुगिन-सिरेण | पक्वरिय-तुस्य-पवणुम्भशेण । मण-गमणामेलिन-सम्दणेण । वमिदग्य-जयकारुग्घोसिरे।।
मुगुमुगुमन्त इन्दिन्दिरंग ॥६॥ धूयंत-धवल-धुभ-धयवडे | जम-वरुणा-कुवेर-विमायणा ।।८।। सुरवहथ-पत्य परिभोसिरेण ||२||
पत्ता
सहुँ सेणे छग चन्दु व
पहन इसागणु णीस रिठ। सारा-णियरें परिवरित ।।१०॥
सण्णममित जाहे सपणदए दसासे ।
खुहिय महोवहि व्य सु-समुहिए पिणासे ।। सण्णमइ सरहसु जम्छुमालि । बिटिमु डामरु उड्डमरु मालि ॥ सण्णजाह मड मारीचि अण्णु। इन्दई वणवाहणु भाणुकपणु ॥३॥ सपणजाई जरु अहिमाण्य-सम्भु। पवमुहु णि यम्बु सइम्भु सम्भु ।। सण्णजह बन्दुराम अक्कु । धुमक्सु जयाणणु मयरु णा ॥५॥ परिवार वि सपणम्झन्ति वीर । अङ्गजन्य-गवय-वक्ख धार ॥६॥ जल पीक-विराहिय-कुमक्ष कुन्द । सम्भव-सुसेण-दहिमुह-महिन्द ॥७॥ ताराबइ-सार-तरङ्ग-रम्भ | सोमित्ति-हणुव अदिमाण-खम्म । अकोस-दुस्थि-सन्ताव-पहिय । णदण-मामण्डल राम-सदिय ॥९॥
घत्ता
साई आग
एम राम-रावण-बलरें।
खर काले पहि-जकई॥१०॥
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