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________________ परमचरित भिगियई वे षि सेणणई बाउ जुम्नु घोरों। कुण्डाल-कडय-मस-णिवडन्त-कणय-दारो ॥१॥ हणहणहणकार महा-रउन्दु। छणठणकणन्तनगुण-सिन्य-सद्ध ॥२॥ फरफरयरन्न-कोदण्ड-पयरु । थरथरहरन्त-णाराय-णियह ॥३॥ खणखणखणन्त-तिक्खरग-खग्गु । हिलिहिलिहिलात-हय-पञ्चकम् ॥ गुलगुलुगुलन्त-गमवर-विसालु। हुणुहणु-भणग्स-णरवर-वभालु ॥५॥ पुप्फस-बस-णिग्गनतन्त-भालु। धावन्न-फलेना-सव-कपल ॥६॥ झलमलमलन्त-सोणेय-पवाहु । छिनन्त-चलण-सुन्त-बाहु ॥७॥ णिवरम्त-सीसु णान्त-रुण्ड । ओपल मुरय-धय-उत्त-दण्ड ॥८॥ सहि सेहएँ रणे रण-भर-समाधु। राहब-किकर घर-बाव-हत्थु ॥९॥ घता सीहन्दउ सन्तावाणु धवल-सीह-सन्दणे चरित । सहुँ मारि अभिजिउ ।। 1 ॥ [४] वेषिण वि सोह-सन्दणा वे वि सीव-चिन्धा । वेणि वि चाव-करयला चे वि जग पसिहा ॥१॥ वेण्णि वि जस लुब विरुद्ध कुछ । वेषिण वि वसुजल कुल-विसुद्ध ॥३॥ घेण्णि वि सुरचहु-आणन्द-जणण | घेषिण वि सत्ततम सन्तु हणण ॥३॥ वेपिण वि रण-धुर-धोरिय महम्त । वेषिण वि जिण-सासणे मत्तिवन्त ॥४॥ बेषिण वि दुजय जय-सिरि-णिवास । वेणि वि पणई-यण-पूरियास ||५|| ग्णि वि णिसियर-णरवर-वरिछ । वेण्णि वि राइवरावणइट्ठ ।।६।। वैणि वि जुज्झन्ति सिलीमुद्देहि। णं गिरि अधरोप्पर सरि-मुईहि ।।७।।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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