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घत्ता
तर्हि अवसर केवलिहिं पगालिब " दसयगइहें मरणु जसु पासिउ । कोटि सिल बि जो संचालेसर सो घरहरुहो भाइ होस" ॥६॥
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एमवत गय अम्हुँ कणें । तें करजेण
पड्ड
३१ ॥
बारह दिवस एस् अच्छन्तिहुँ । तीहि मि पुखारम्भु करम्तिहुँ || शा वरेण रोण आहे । उचवणें दिष्णु दुडें ॥ ३ ॥
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केरउ ॥ श्रा
पउमचरिउ
ताम
हुआसणु
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तो विण चित्त जाउ विवरेस्ड एड कहाणउ अम्हहुँ तो एत्यन्त रोमजिय भुड भणड़ हसेष्पिणु पचणञ्जय सुउ ॥५॥ 'तुम्हें हिजं चिन्तितं हूअर साहसगइहें मरणु संभूअउ ॥६॥ जसु पासिङ सो अम्हहुँ सामि । तिहुअण केण वि उ आयासि ॥७॥ जाहुँ पासु पुजन्तु मणोरद्द' । बहुद्द जाम परोपरु इय कह ॥८॥
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दहिमुह - राज ताम्र स गुरु पादेवि करेवि
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धन्ता
कलत्तड पुण्फ पसंसणु इणुर्वे
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संभाषणु करेषि तणु तचें । दहिमुह राउ वुत्तु पुणु हणुर्वे ॥ १॥ 'भो भो वह महिहर चिन्धहों । कण्णउ केवि जाहि किकिन्धों ॥ २ ॥ तर्हि अष्कर नारायण जेउ । जो वरु चिरु केवलिहिं गवि ॥ ३ ॥ घाउ तेण समरें साहलगइ। बेयदुत्तर सेविह ता कुमारि अहिणव- भोग्गड । तिष्णि वि राहवन्दीँ महुँ पुणु लङ्कार जाएगवड पेसणु सामिह ताठ
परवइ ॥४॥ जोगाड ॥५॥ करेग्वड' ॥६॥
तं जिसुय संच िदहिमु । जो संमाण दाणे रणें अदिमु ॥१७॥ तं किष्किन्ध यस संपाइल | जस्वव गल - गीले हिँ पोमाइड ॥८॥
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निवेय-हृत्यु संपत्तउ ।
समउ कियद संभालणु ॥१॥
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