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पडमचरित
सं णिसुणेवि कुविउ भारउ । णं हवि थिएण सिम सय चारव ॥७॥ 'भामि अज्जु मडप्फरु कण्णहुँ । जेण ण होन्ति मग्ण वि अण्णाहुँ' ।।८।।
पत्ता
अमरिस कुछउ कुरुड पधाहड गम्पिणु षण पइसाणरु लाइट । धगधगमाणु समुदिउ वण-उ झत्ति पलितु णाई खल-जग-वउ ॥६॥
पढम-वचग्गि पारहीं। पाई कि मिग-सराह सपलु वि कापणु जालालीविड । रामही हियट या संदीविड ।।२।। कत्थइ दारु - बणाई पलितई । णं वइदेहि - दसाणण - चित्तई ॥३॥ सुक्केहि मि असुक्क पजलाविय । णं सुपुरिस पिसुणहि संताविय ।।।। कहि मि पणहई वणयर-मिहुणहूँ । कन्दन्तई णिय-खिम्भ-विहूणई ।।५।। गपि मुमिन्दहुँ सरणु पाई। सायव इस संसारहों तदुई ॥६॥ हि अबसरे गयणरण जस्तै । समिउ णिय-विमाणु हणुवन्त ॥७॥ मरु मरु लाइड केण हुवासणु । भाट गमणु करमि गुरु-पेसणु ॥८
पत्ता
भह सरणाहणे श्रह पन्दिग्गहें सामि-काज अह मिस-परिग्गहें। आऍहि बिहुर हि जो णउ जुमाइ सो गरु मरण-सए वि ग सुज्झइ ॥६॥