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सत्तधालीसमो संधि
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उनमाओंसे भरपूर सुकविके कान्यकी तरह विस्तृत उस नगर में राजा दधिमुख अपने परिवारके साथ इस तरह रहता था मानो स्दर्ग का प्रधान इन्द्र हो ।।१-१२॥
[२] उसकी सबसे बड़ी रानी तरंगमती, कामदेवकी रति, या इन्द्रकी शचीकी भाँति थी। दिन आये और चले गये । इसी अन्तरमें उसकी तीन पुत्रियां उत्पन्न हुई। उनके नाम थे चन्द्रलेखा, विद्यत्प्रभा और तरंगमाला। सुकविकी रसधित कथाकी भौति वे तीनों कन्याएँ दिन-दूनी रात-चौगुनी बढ़ने लगीं। तब बहुत दिनोंके अनन्तर, सुत्रिय राजा अंगारकने दधिमुख के पास अपना दूत भेजकर यह कहलाया, "हे माम (ससुर), यदि तुम भला चाहते हो तो शीघ्र ही तीनों कन्याएँ मुझे दे दो" ।।१-६।।
(यह सुनकर) और अपनी पुत्रियोंके विवाहकी वात मनमें रजकर राजा दधिमुबने कल्याणभुक्ति नामके मुनिसे पूछा कि "मैं अपनी लड़कियाँ किसे दं और किसे न दं ।” मुनिवरने तुरन्त राजामें कहा कि "विजयाधं पर्वतकी उत्तर श्रेणीका मुख्य राजा सहस्रगति है। युद्ध में जो उसका अन्त कर दे, तुम अपनी तीनों पुत्रियों का विवाह उमीरो करना ।
[३] गूरुके वचनों से अत्यंत भावुक वह राजा दधिमुख इस चिन्त में पड़ गया कि अनेक विद्याओं के जानकर राजा सहस्रगतिमे कौन बुद्ध कर सकता है । अथवा मुझे इन सब बातों में न पड़ना चाहिए। क्योंकि गुरुका कहा हुआ प्रलयकाल में भी नहीं चूक सकता (गलत नहीं हो सकता), वह संकड़ों जन्मोमें भी प्रमाणित होकर रहता है । अवश्य ही एक दिन वह मनुष्य उत्पन्न होगा जी सहस्रगतिके साथ युद्ध करेगा। यह पता लगनेपर अनिन्द्य सुन्दरी उन कन्याओंने अपने पिता से पूछा