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[४७. ससचालीसमो संधि ]
मामह पबर-बिमाणासमा अहिणष-जयसिरि-बहु-अवगूवउ सामि का संचालु महाइउ लील' दहिमुह-दीउ पराइउ ।।
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मण - गमगेण तेण गहें जन्सें । दाहिमुहणपरु विट्ट इणुवन्सें ॥१॥ दिहारराम सीम पठ-पाहि । धरिउ गाई पुरु रिणिय सहास हि ॥२॥ अहि पकृशियाई उजाणाई । यहाई णं तिस्थपर - पुराणहूँ ॥३॥ बहिण कयाषि सलाय सुक्कई । गं सीयल सुट पर - दुक्ल था अहि वाविर विस्मय - सोचाणड । अगाइन रेहामुह - गमगर ||५|| अहि पाचार पण वि शिय । बिण-उपएस णाई गुरु संधिय ।।५।। अहि देउलाई धवल-पुष्परियई। पोस्था-वायणई व बहु-परिपाई जहि मन्दिरई स-सोरण- वायई । वं समसरणई सुमागारई ॥ जहि भुव- पेस- सुत्त- दरिसाषण । हरि -दर-सम्महि जेहा भाषण ||१|| जहि वर-वेसड तिणयण - रूबद । परर- भुभा सी अशुहमा । अहिंगबणस्य-वसह-इलहर-मह । राम- सिलोषण - बेहा गहबह ।।