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छायालीसमा संधि चट्टानका टुकड़ा हूँ, आप घोर गर्जन करनेवाले सिंह हैं और मैं छोटा-सा नखनिघात हूँ | आप महागज हैं और मैं भी आपका ही थोड़ा-सा महा विकार हूँ। आप कमलोंसे शोभित मान सरोवर हैं और मैं भी आपका ही छोदा जलकण है। आप महानुभाव श्रेष्ठ तीर्थकर हैं और मैं भी आपका कुछ-कुछ ब्रत स्वभाष हूँ | आपका प्रतिमल्ल कौन हो सकता है, आप किससे पराजित हो सकते हैं । सोनेसे जड़ा हुआ मणि क्या अपनी आभा छोड़ देता है !" ॥१-१०॥
[१२] तब हनुमानने किसी तरह राजा महेन्द्रको धीरज बँधाकर कहा, "तात तात, चलकर रामचन्द्रकी सेनामें मिल जाइए | उन्होंने छमारा बहुत भारी उपकार किया है। क्योंकि उन्होंने दुष्ट मायासुप्रीषको मार डाला है । भला उनकी सेवा कौन कर सकता था । अतः आप ईया छोड़कर रामसे मिल जायें । मैं भी उनका उपकार करूँगा। मैं लंकानरेशके पास जा रहा हूँ हनुमानके इन वचनोंको सुनकर राजा महेन्द्र और माइन्हें दोनों तुरन्त बल पड़े। वे एक पलमें ही सुग्रीव राजाके नगरमें पहुँच गये । रामने (उन्हें आते देखकर) जाम्बवन्तसे पूछा कि ये कौन हैं । कहीं काम समाप्त किये बिना ही हनुमान लौटकर तो नहीं आ गया है। इसपर मन्त्रीने उत्तर दिया कि यह अंजना देवीके पिता महेन्द्र राजा हैं। जब तक राम और जाम्बवन्तमें इस प्रकार बातें हो रही थी तब सक राजा महेन्द्र उनके सम्मुख ही आ पहुँचे । रामके एकसे एक प्रचण्ड सेवकोंने अपने कठोर और दृढ़ भुजदण्डोसे राजाको (शुभागमन पर) अर्घ्यदान किया।