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परमचरित
नुहुँ केसरि घोर-रउद्द - गाउ । हउँ कि पि तुहारउ ह - णिहाउ ॥६॥ नुहं मत्त - महाड दुणिक्षारु । हरें कि पि सुहारउ भय-वियारु ॥७॥ नुहुँ माणस - सरवरु सारविन्दु । हउँ कि पि तुहारउ सलिल बिन्दु ॥ तुहुँ वर तित्थयर महाणुभाउ । इउँ कि पि तुहारउ क्य-सहा ॥१॥
पत्ता
को पडिमल्लु तउ तहुँ केणश्वरेणोहउ । णिय पह परिहरइ कि मणि चामियर-णिवन्द' ॥१०॥
[१२] कह वि कह वि मणु र्धारित विज्ञाहरणरिन्दहो ।
'ताय ताय मिलि साहणे गम्पिणु रामचन्दहो ॥३॥ बारउ किन उसयार तेण । मारिउ मायासुफीड जेण ॥२॥ को सका तहाँ पेसणु कोवि । मिलु रामहाँ मस्छरु परिहरेवि ॥३॥ उक्यारु करेबउ मह मि तासु । बाएवउ लाहिवहाँ पासु' ॥५॥ हणुयहाँ एयह वयणहूँ सुणेवि । माहिन्दि- महिन्द पयट्ट वै वि ॥५॥ सुमगांव-गयरु जिविसेण पत्त । वलु पुछा 'हु को जम्बवन्त ॥६॥ किं ववि पटीवर पवण-जाऊ । असमत्त- फज्नु इणुबन्त आउ' ॥७॥ मन्तिण पषुप्त गरवर-मइन्दु । अक्षण, वप्पु पंहु सो महिन्दु' ॥८॥ वरू जम्वद वे वि चवन्ति जाम । सवधम्मुहु आठ महिन्दु ताम ||
वत्ता हलहर । सेपरहि सञ्चाहिं एकेक - पचपहिं । अगधुवाइयउ विध-कढिण स ई भु च-दयहि ॥१०॥