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पचमचारर
[..3 'साहु साहु भो सुन्दर सुउ सबउ जापवणहो ।
पईमुएवि मुहरसा मजहाँ होइ कपणहो ।।१।। जो सच - साम - सखेहि अस - मिलन ।
जो उभय-कुल- दीयको उमय- कुल-तिल ।।२।। जो उभय - बंसुज्मको ससि वयफलकु ।
जो सीइबर - विक्कमो समरें णांस ॥३॥ जो दस - दिसा - वलय - परिचस-य-णामु
जो मस - माया - कुम्मायालायाम् ॥ जो पचर - जयलग्नि - मालिसणाबासु
जो सबल - पदिवाख-दुपेक्ख-णिप्णासु ॥५॥ जो कित्ति - रबमायरो अस - जलावत
सोम - मरमाणो अतिरी - ॥६॥ जो सयण · कप्पदुमो सब · अचलेन्दु
जो पथर • पहरण - फडा-बोय-भुभाइन्दु ॥७॥ जो माण · विम्महरि अहिमाण - सप- सिहरु
धणुवेय - पश्चाणणो वाण - णड-णियर ॥८॥ ओ अरि - कुरोह - णिचण - दुग्धोट्टु पशिवाख-जलवाहिणी-सिमिर-अल-घोट्टु |
वत्ता जो केण बि ण जिउ मासा - कला - विवजित । सो हउँ आइपणे पह ए णवरि परजिउ' ॥१०॥
[1] प3 घयणु णिसुप्पिणु दुसमन्दणु-षिमणो ।
'कवण एस्थु किर परिहयु' भणइ घणारिणन्दणो ॥१॥ 'नुहुँ देव दिवायर तेय-पिण्हु । हउँ कि पि तुहारउ किरण-सण्हु ॥२॥ तहुँ वर-मयलन्छणु भुवण-तिलाउ । हउँ कि पि सुहारड जोण्ड-णिलउ ॥३॥ नुहुँ पवर - समुदु समुह-सारु । हउँ कि पि सुहारउ जल-नुसार ॥४॥ नुहुँ मेरु - महीहरु महिहरेसु । हउँ कि पि सुहारउ सिल-णियेसु ॥५॥
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