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पठमचरिट
णिवरिए सिरीसेले विम्भलें । जाय वोल सुरवरद णाहयले ॥ णिप्फलं गयं इणुष- गणियं । बण - समूहमिद सलिल - पबियं ॥५॥ राम · इक ण साहियं । जापई बयणं ण चाहियं ॥६॥ रावणस्स वर्ण विणासियं । विहलु आसि विलिहि भासियं ॥७॥ एव घोरल सुर-सत्य जाहिं । इणुउ हर सीड साहि ॥८॥ उडिभी सरासण - विहस्थो । सरपरेहिं किड रिट शिरस्थली ॥६॥
पत्ता मण्ड कइपण सर-पम्बरें छुवि रखा। धरिउ महिन्दु रण गं गङ्गा - बाहु समुः ॥१०॥
कुखरण सम मायः . प . इंगा।
धरिय वे वि माहिन्दि · महिन्द कइद्ध- केउणा ॥१॥ माणु मलेषि करवि कामहणु । चलोहि परिड सारण- णदणु ॥२॥ 'अहाँ माहिन्ध मात्र मरुसेनहि । जं विमुहिउ तं सपल खमेजहि ॥३॥ अहाँ अहाँ ताय ताय रिउ-भक्षण । जिय-सुथ तं वासरिय किमजण ||४|| हउँ सह तणड तुझ दाहित्तड । णिम्मल - चंसु समुज्जल- गोसउ ।।५।। भग्गु मरट्टु जेण रपों वरुणहाँ। हउँ हणुवन्तु पुस्त तहाँ पवणहाँ ५६।। पेसिड अब्भत्थें वि सुग्गी । रामहाँ हिड कलस पहनी 11७।। दूअ-काज संचल्लिड जाहिं । पट्टणु दिछु नुहारड ताहि ॥८ माया - बहरु असेसु विदुझिउ । ते तुम्हहिं समाणु मह अम्किउ' ॥६॥
घत्ता तं णिसुने वि चयण विजाहर - णयणाणन्दें। णेह - महाभण मारुइ अवगढ़ महिन्दे ।।१०।।